खैर, खजूरी गांव में इन हालातों पर मुझे रोना नहीं बल्कि एक युवा होने के नाते गांव को मुख्यधारा से जोडऩे का समाधान खोजना है। भौगोलिक रूप से खजूरी गांव पहाड़ी पर स्थित है और विद्यालय तथा पंचायत सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। शेष घर छोटी-छोटी पहाडिय़ों पर हैं। सूचना के युग में यह गांव सूचनाओं से दूर है। साक्षर नहीं है तो अखबार कहां से पढ़ेंगे? टीवी व रेडियो ही नहीं है तो सुने और देखे कैसे?
मुझे यहां विचार आया है कि अगर पंचायत में एक कंट्रोल रूम बनाया जाए और एक ऐसे स्थान पर स्पीकर लगाया जाए, जिससे सबको सूचनाएं पहुंचे तो यह कैसा रहेगा? शिक्षा-स्वास्थ्य की सूचनाएं विद्यालयों के शिक्षकों, आशा व एएनएम के जरिए बच्चों के अभिभावकों तक पहुंचाएंगे। इतना ही नहीं, मैं चाहता हूं अभिभावकों को यह भी जानकारी दें कि उनका बच्चा पढ़ाई में क्या कर रहा है और उसमें क्या प्रतिभा है? सूचना के युग में अब खजूरी में तो सूचनाएं पहुंचाने का एकमात्र यही जरिया दिख रहा है। इसके लिए मेरे युवा साथियों के सहयोग की भी आवश्यकता है। आर्थिक भार भी ग्रामीणों तक नहीं पहुंचे, इसकी व्यवस्था भी करेंगे।
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उदयपुर के मेरे युवा साथियों के लिए यह एक चैलेंज है। देहरादून से हूं और आजकल आपके गांव खजूरी में रहता हूं। आदिवासी परिवारों के साथ। फैलोशिप कर रहा हूं। यहां कई समस्याएं हैं, आगे भी आती रहेगी, बात समाधान खोजने की है। मुझ और आप जैसे युवाओं के लिए…इसे चैलेंज मानें या फिर मेरी तरह नवाचार…आप तय करें…जैसा देखा..वैसा यूथ के लिए लिखा है…उदयपुर पत्रिका फेसबुक पेज पर आपके कमेंट्स का इंतजार रहेगा।