कुसुम जैन- पहली बात यह कि पश्चिमि संस्कृति हमें डैमेज करने की कोशिश नहीं कर रही हम उसे अवसर प्रदान कर रहे हैं। हम अपनी संस्कृति का मूल तत्व दूर रखे जा रहे हैं, जिससे पश्चिमि संस्कृति का हावी होना लाजमी है। जिन चीजों से हमें गर्व होना चाहिए, उन्हें हमने देखना भी बंद कर दिया। यही हमारी गलती है, जिसे सुधारने के लिए हमें दर्शन की ओर ही जाना पड़ेगा। दर्शन ही हमारी संस्कृति का मूल है। हम युवाओं को यही समझाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे उनका दर्शन की ओर आकर्षण बढ़ रहा है।
कुसुम जैन- पाश्चात्य संस्कृति में दर्शन का अर्थ है ‘लव ऑफ नॉलेजÓ जबकि हमारे यहां दर्शन का मतलब है देखना। तत्व को, मूल स्वरूप को, यथार्थ को उसके यथार्थ रूप में देखना ही दर्शन है। इसलिए दर्शन की ओर हमारा आकर्षण स्वभावत: होना चाहिए। जो लोग इसे समझ गए उन्हें आगे कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं रही और वे ही आने वाली पीढ़ी को इसकी ओर मोडऩे के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
कुसुम जैन- परिवार टूटने, बिखरने का सबसे बड़ा कारण व्यक्तिवाद है। व्यक्तिवाद पश्चिम से आया है। आज बड़ा वर्ग इसकी चपेट में है। हमारी भारतीय संस्कृति, परंपरा की जो ताकत है वह परिवार है। यह परिवार ही है, जिसने हम सबको जोड़ रखा है। पश्चिम व्यक्तिवाद पर जिंदा है, जबकि हम सामाजिकता, दर्शन पर विश्वास करते रहे हैं। जिस परिवार में सामाजिकता का अभाव रहा, व्यक्तिवाद पैदा हुआ वे बिखर जाते हैं और परिवार टूटने से अलगाववाद, अकेलापन जैसी समस्याएं पैदा होने लगी। व्यक्तिवाद ने हमें इतना आत्मकेंद्रीत बना दिया कि धीरे-धीरे हम सबसे अलग होते जा रहे हैं।
कुुसुम जैन- हम मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में पाश्चात्य संस्कृति, सथ्यता ने हमारे देश में पैर पसारे हैं, लेकिन कई लोग जो भारतीय परंपरा को समझते हैं, वो इसे फैलाने की भी कोशिश कर रहे हैं। थोड़ा वक्त निकलने दीजिए, अगली सदी एशिया की होगी। पश्चिम के दार्शनिक कहते हैं कि पश्चिम की संस्कृति अपना सर्कल पुरा कर चुकी है। अब यह क्षरण की ओर है। अब अगला नेतृत्व एशिया से होगा और भारत के पास वो खजाना है, जो पूरे विश्व में किसी के पास नहीं। इसलिए एशिया से भी केवल भारत ही है, जो अगला नेतृत्व प्रदान करेगा।