उज्जैन

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष बोले…महाकाल की तरह मस्जिदों-गिरिजाघरों की आय का हिसाब भी ले सरकार…

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष नरेंद्रगिरि महाराज ने कहा सिंहस्थ में सरकार पर आंख मूंदकर विश्वास किया और इसका नतीजा है कि शिप्रा का आंचल फिर से मैला हो गया है।

उज्जैनFeb 03, 2018 / 08:58 pm

Lalit Saxena

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उज्जैन. अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्रगिरि महाराज ने मीडिया से चर्चा में कहा कि सिंहस्थ-२०१६ में साधु-संतों ने सरकार पर आंख मूंदकर विश्वास किया और इसका नतीजा है कि मां शिप्रा का आंचल फिर से मैला हो गया है। मोक्षदायिनी का जल आचमन योग्य भी नहीं है। (पत्रिका डॉट कॉम) शिप्रा के संरक्षण-संवर्धन की योजना फेल हो गई है। इस पर सरकार को बातों में नहीं, जमीन पर गंभीरता से काम करना होगा।

महाकाल की तरह अन्य मंदिरों में हो कलेक्टर का नियंत्रण
सरकार ने जिस तरह महाकाल मंदिर में कलेक्टर को समिति का अध्यक्ष बनाकर व्यवस्थाओं को नियंत्रित कर रखा है, वैसा नियंत्रण सभी धार्मिक स्थलों पर होना चाहिए। (पत्रिका डॉट कॉम) फिर चाहे वह मस्जिद, गुरुद्वारा या गिरजाधर हो। इसे लेकर वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखेंगे। शिप्रा की दुर्दशा पर सरकार को गंभीरता से कम करना चाहिए। केंद्र की नमामि गंगे योजना फ्लॉप हो गई है।

व्यवस्थाओं पर नियंत्रण हो
श्रीमहंत ने कहा मेरी जानकारी में लाया गया कि महाकाल मंदिर समिति में कलेक्टर अध्यक्ष होते हैं और कलेक्टर आय-व्यय के साथ सभी व्यवस्थाओं पर नियंत्रण रखते हैं। ऐसा है तो सभी धार्मिक स्थान मस्जिद, गुरुद्वारा या गिरजाधर पर कलेक्टर का नियंत्रण होना चाहिए। मस्जिदों, गिरजाधरों में भी कौन आ रहा है, कौन मदद करता है। इनकी आय कैसे होती है, इन सभी पर भी कलेक्टर के माध्यम से नजर होना चाहिए।

आमदनी पर भी हो निगरानी
अनेक मस्जिदों, गिरजाधरों में करोड़ों की आय होती है। इनकी आमदानी और व्यवस्थाओं की निगरानी होना चाहिए। यदि सरकार ऐसा नहीं कर सकती है, तो महाकाल मंदिर को भी सरकार के नियंत्रण से मुक्त किया जाए। इसके लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पत्र लिखेंगे।

शिप्रा का आंचल फिर से मैला
श्रीमहंत ने कहा कि सिंहस्थ २०१६ में शिप्रा के स्वरूप में निखार आ गया था। नदी साफ और सुंदर थी। उस वक्त मुख्यमंत्री ने मां शिप्रा संरक्षण-संवर्धन की योजनाओं के साथ सरकार के कार्यों की जानकारी दी और कई वादे किए थे। (पत्रिका डॉट कॉम) इस पर अखाड़ा परिषद और तमाम साधु-संतों ने विश्वास किया था। अब लगता है कि हमने आंख बंद कर विश्वास कर लिया। शनिवार को शिप्रा को देखा तो मन दु:खी हो गया। शिप्रा सिंहस्थ २०१६ से पहले जितनी बुरी हालत में थी, उससे खराब स्थिति में अब है।

संतों को शामिल नहीं किया
श्रीमहंत नरेंद्रगिरि महाराज ने कहा कि गंगा की सफाई की केंद्र की नमामि गंगे योजना फ्लॉप हो गई है। दरअसल, यह योजना सरकारी और राजनीतिक हो कर रह गई। इसमें साधु-संतों को शामिल नहीं किया। (पत्रिका डॉट कॉम) सरकार की योजना अच्छी थी, लेकिन उद्देश्य और क्रियान्वय ठीक नहीं होने से सकारात्मक परिणाम नहीं मिले हैं।

यह भी कहा
– उज्जैन में अद्र्ध कुंभ आयोजन को लेकर अच्छा विचार है। इसके लिए अभा अखाड़ा परिषद भी तैयार है,लेकिन मध्यप्रदेश सरकार पहले अपनी मंशा,योजना और बजट को लेकर मंश जाहिर करें। इसके लिए अभा अखाड़ा परिषद चर्चा की जाए।

– उज्जैन में केवल सिंहस्थ मेला प्राधिकरण के गठन का कोई लाभ नहीं है। सिंहस्थ मेला प्राधिकरण की बागडोर अधिकारियों के हाथ में देने के बाद इस साधु-संतों की निगरानी समिति का गठन करना चाहिए।

– उज्जैन सिंहस्थ २०१६ के दौरान अखाड़ों में हुए स्थायी निर्माण कार्य का लाभ अखाड़ों को मिला है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी तर्ज पर प्रयाग में अखाड़ों के स्थायी निर्माण कार्यों के लिए प्रथम चरण में एक-एक करोड़ रु. दिए है।

– अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो कर रहेगा।

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