scriptबच्चा जन्म लेने के छठे दिन भाग्य लिखती हैं ये देवी, एक हाथ में कलम तो दूसरे में है कपाल | Bhagya Vidhata Mata's Temple in Ujjain | Patrika News
उज्जैन

बच्चा जन्म लेने के छठे दिन भाग्य लिखती हैं ये देवी, एक हाथ में कलम तो दूसरे में है कपाल

उज्जैन में आदि शक्ति विभिन्न रूपों में विराजित है। इनमें से एक पटनी बाजार के समीप मगरमुहा की गली में स्थापित विधाता माता मंदिर है।

उज्जैनOct 15, 2018 / 07:46 pm

Lalit Saxena

patrika

ancient,Newborn,religious,mahakal,Devotee,mythological,

उज्जैन. मंदिरों की नगरी उज्जैन में महाकाल के साथ ही धार्मिक, पौराणिक और प्राचीन महत्व के अनेक स्थान हैं, इसमें एक विधाता देवी माता का मंदिर भी है। माना जाता है कि देवी नवजात शिशु के जन्म के छठे दिन उसका भाग्य लिखती हैं। इस मान्यता के चलते दूर-दराज से भक्त अपने बच्चों को लेकर माता के दर्शन को आते हैं। 15 सौ साल (मौर्यवंश के पूर्वकाल) पुराने इस मंदिर में देवी की स्वयंभू मूर्ति खड़ी अवस्था में विराजित है। देवी एक हाथ में कलम तथा दूसरे हाथ में कपाल है।

शक्ति साधना की प्रमुख भूमि उज्जैन
शक्ति साधना की प्रमुख भूमि उज्जैन में आदि शक्ति विभिन्न रूपों में विराजित है। इनमें से एक पटनी बाजार के समीप मगरमुहा की गली में स्थापित विधाता माता मंदिर है। मंदिर के पं.प्रभाशंकर शुक्ल ने बताया कि माता विधाता देवी का मुख्य नाम मां विद्यात्तय देवी है, जिसे सृष्टि की देवी नाम से भी पहचाना जाता है। माता शिशु के जन्म के छठवें दिन उसका भाग्य लिखती हैं, इसलिए उन्हें भक्त विधाता देवी के नाम से जानते हैं। माता की करीब ढाई फीट ऊंची खड़ी मूर्ति स्थापित है। इनके उल्टे हाथ में कपाल है और सीधे हाथ में कलम है। इनके आसपास दो दूत हैं, जिनके नाम चित्र और गुप्त हैं। पं.शुक्ल ने बताया कि यह दोनों शिशु के जन्म के बाद देवी को सूचना देते हैं। इसके बाद माता जन्म के छठवें दिन भाग्य लिखती हैं। इसका उल्लेख देवी भागवत, दुर्गा सप्तसती और अवंतिका पुराण में मिलता है। देवी की मूर्ति मौर्यवंश के पूर्वकाल की है। माता का पूजन खासकर नवरात्रि के छठवें दिन किया जाता है। माता का चमेली के तेल, चांदी के वर्क से शृंगार किया जाता है और उनके सिर पर हिग्लू लगाया जाता है। भक्त शिशु के जन्म बाद और नवरात्रि में पूजन के दौरान माता के चरणों में हार-फूल के साथ कलम, दवात और कापी चढ़ाते हैं। मूर्ति पर प्राकृतिक वस्त्र की आकृति बनी हुई है। माता के दर्शन के लिए देश-विदेशों में पहुंचते हैं। खासकर मद्रास, गुजरात, बंगाल, राजस्थान सहित उड़ीसा से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां माता का पूजन- अर्चन करने पहुंचते हैं।

माता को चुनरी नहीं ओढ़ाई जाती
विधाता माता माता को चुनरी नहीं ओढ़ाई जाती है। पं.शुक्ल ने बताया कि करीब दो सौ वर्ष पूर्व ग्वालियर स्टेट की महारानी बाईजाबाई सिंधिया ने माता की पूजन-अर्चना कर चुनर ओढ़ाई थी। पूजन के बाद उन्हें रात को नींद में सपना आया था कि मुझे चुनरी नहीं चढ़ती है, तुमने यह अनर्थ कर दिया है। सपना आने के दूसरे दिन जब बाईजाबाई पुन: माता के दरबार में पहुंची तो उस स्थान पर चुनरी जली हुई मिली थी। यह बात पं.शुक्ल के पिताजी उन्हें बताया करते थे। तब से लेकर आज तक कभी माता को चुनरी ओढ़ाकर शृंगार नहीं किया गया है।

खुदाई में निकली थी माता की मूर्ति
पं. शुक्ल के अनुसार उनके पूर्वज मुख्य रूप से गुजरात के रहने वाले थे, लेकिन औरगंजेब द्वारा आमजनों के साथ अत्याचार किया जा रहा था। उस वक्त हमारे पूर्वज अपना घर छोड़कर उज्जैन में आकर बस गए थे। यह क्षेत्र महाकाल वन के नाम से जाना जाता था। हमारे पूर्वज इसी स्थान पर आकर रहने लगे थे, तभी उन्हें एक दिन स्वप्न में माता ने दर्शन देकर इस स्थान मूर्ति होने के संकेत दिए थे। इसके बाद पूर्वजों ने खुदाई की। इसमें विधाता देवी की मूर्ति निकली थी। जिसकी स्थापना उसी स्थान पर कर दी गई और आज भी वहीं है।

Home / Ujjain / बच्चा जन्म लेने के छठे दिन भाग्य लिखती हैं ये देवी, एक हाथ में कलम तो दूसरे में है कपाल

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो