क्या आप जानते हैं: गणेशोत्सव की शुरुआत कब, क्यों और कैसे हुई थी ?
गणतंत्र प्राप्ति के लिए शुरू किया था गणेशोत्सव
गणतंत्र प्राप्ति के लिए शुरू किया था गणेशोत्सव
उज्जैन. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने लगभग 125 साल पहले गणतंत्र प्राप्ति के लिए गणेशोत्सव पर्व की शुरुआत महाराष्ट्र में की थी, जो आज देशभर में मनाया जाता है। इस उत्सव में पूजन-आराधना के साथ स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी और आजादी के दीवाने एकत्रित होकर नीति बनाते और संग्राम को नई गति प्रदान करते थे।
ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि तिलक ने गणपति की उपासना इसलिए की क्योंकि ये विघ्नहर्ता और मंगलकारी देवता हैं। गणपति और गणराज्य मिलकर गणतंत्र का संकेत दे रहे थे। 1904 में महाराष्ट्र में तिलक ने एक ज्योतिष सम्मेलन बुलाया था, जिसमें ग्वालियर स्टेट के महाराजा माधवराव सिंधिया की प्रेरणा से मेरे दादाजी नारायणजी व्यास भी पहुंचे थे। वहीं तिलक ने उन्हें सिद्धांतवागीश की उपाधि दी थी। तब तक महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की परंपरा शुरू हो चुकी थी। उसी उत्सव से प्रेरित होकर दादाजी ने 1908 में विशाल भारत के गणतंत्र की प्राप्ति के लिए विशाल व दिव्य बड़े गणेश की स्थापना उज्जैन में महाकाल मंदिर के समीप की। तब से लेकर आज तक इस मंदिर में भारत की सुरक्षा के लिए उपासना की जाती है।
गणेश चतुर्थी पर लगेगा सहस्त्र मोदकों का भोग
पं. व्यास ने बताया गणेश चतुर्थी वाले दिन गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ 24 ब्राह्मणों द्वारा किए जाएंगे। सहस्त्र मोदकों से हवन और सहस्त्र मोदकों का भोग अर्पण किया जाएगा। साथ ही असंख्य लड्डू, फल व पंचामृत भोग बाद महाआरती होगी। प्रतिदिन विशेष शृंगार होगा।
चिंतामण गणेश
शहर से 8 किलोमीटर दूर भगवान चिंतामण गणेश का मंदिर है। यहां आम दिनों में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां एक साथ तीन प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। यह स्थान भगवान श्रीराम के वन गमन के समय का बताया जाता है। पुराणों के अनुसार माता सीता के हाथों ही इनकी स्थापना हुई थी। जब सीताजी को प्यास लगी तो लक्ष्मण जी ने बाण मारकर पानी निकाला था, उस स्थान पर आज भी लक्ष्मण बावड़ी विद्यमान है। हर एक की चिंता दूर करने वाले भगवान चिंतामण गणेश की सौम्य प्रतिमा यहां विराजमान है।
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