विक्रम विवि कुलपति शुक्रवार को उज्जैन से बाहर गए थे। दोपहर 3 बजे विवि प्रशासनिक कार्यालय पहुंचे। तो द्वार पर ताला लगा हुआ था। कार्यालय में पदस्थ कर्मचारी चॉबी तलाशते रहे, लेकिन चॉबी नहीं मिली। इसके बाद कुलपति ने सब को जमकर डांटा, लेकिन थोड़ी देर बाद कुलपति ने बताया कि जिस चॉबी को तलाश रहे हो, वह द्वार में ही लगी हुई है। यह देख कर्मचारी कैलाश ने तत्काल कक्ष खोल दिया। थोड़ी देर बाद ड्रायवर अमित यादव कक्ष में पहुंच गया। यहां पर कुलपति और अमित की छुट्टी को लेकर बहस हो गई।
कोई नहीं ड्रायवर बनने को तैयार
विवि में कुलपति का ड्रायवर व बंगले पर ड्यूटी देने के लिए कोई तैयार नहींं है। अमित भी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी है और गोपनीय विभाग में पदस्थ हुआ। अमित का मस्टर भी ड्रायवर का नहीं है। साथ ही कुशल ड्रायवर की पात्रता भी नहीं रखता है, लेकिन जब कोई ड्रायवर नहीं मिला। तो गोपनीय समन्वयक बीके मेहता ने अमित के नाम का सुझाव दे दिया बता दे कि निजी वाहन एंजेसी ने भी विश्वविद्यालय को बिना ड्रायवर का वाहन देने की बात कही। दरअसल, कुछ वाहन विश्वविद्यालय ने ठेके पर लगा रखे है।
विक्रम विवि में कुलपति की डांट से स्वास्थ्य बिगडऩे वालों की लिस्ट काफी बड़ी है। सबसे पहले गोपनीय विभाग में पदस्थ खले भर्ती हुए। इसके बाद डांट और फटकार आम और हर दिन की बात हो गई। कई बार विद्यार्थी, छात्रसंगठनों, महिला कर्मचारी व प्रोफेसरों तक से बहस हो चुकी है, लेकिन स्वास्थ्य बिगडऩे वालों उपकुलसचिव डीके बग्गा, पूर्व कुलसचिव सुभाषचंद्र आर्य, बंगले पर पदस्थ खाना बनाने वाला कुलपति की डांट से अस्पताल तक पहुंच चुके है।