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रामघाट पर चर्चा : अब अपने ही उद्धार को तरस रही मोक्षदायिनी शिप्रा

उज्जैन उत्तर क्षेत्र की जीवनरेखा है शिप्रा, पंडे-पुजारी बोले- सिंहस्थ के कुछ दिन को छोड़ दें तो पहले जैसे हाल, सीवरेज लाइन में भी खामियां

उज्जैनOct 23, 2018 / 12:26 pm

Lalit Saxena

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राहुल कटारिया@उज्जैन. आप ही देख लो… शिप्रा का पानी कैसा काला पड़ा है, बदबू इतनी की कोई आचमन कैसे करें। घाटों पर फिसलन से कल ही मंदसौर के एक श्रद्धालु का पैर फिसल गया और हाथ में फै्रक्चर हो गया। कंजी साफ नहीं होने से लोग यहां एेसे ही चोटिल होते हैं। सिंहस्थ के समय कुछ दिन पानी साफ था, लेकिन अब इंदौर की खान नदी का काला पानी शिप्रा में मिलकर इसे दूषित कर रहा है। उज्जैन उत्तर विस क्षेत्र की जीवनरेखा मोक्षदायिनी शिप्रा की ये बदहाली तब है जब करोड़ों रुपए खर्च कर सरकार ने नर्मदा-शिप्रा लिंक व खान डायवर्सन प्रोजेक्ट किए हैं। लाखों लोगों की आस्था के केंद्र व तर्पण के मुख्य स्थान होने के बाद भी शिप्रा का बदहाली को घाट के पंडे-पुजारी चिंताजनक बता रहे हैं।

देशभर से लाखों लोग आते हैं
पत्रिका से चर्चा में रामघाट पर आनंदीलाल शर्मा बाल्टीवाला गुरु बोले- सिंहस्थ में करोड़ों खर्च हुए लेकिन मोक्षदायिनी शिप्रा अब भी मोक्ष के लिए तरस रही है। देशभर से लाखों लोग आते हैं, लेकिन वे जब यहां की बदहाली देखते हैं तो मन मसोस कर चले जाते हैं। स्थानीय प्रशासन ध्यान नहीं देता। अजय चौबे हाथीवाला पंडा कहते हैं घाट के नीचे सीवरेज लाइन के लिए पाइप डाले, इसकी बजाय ऐरन का नाला बनना था। जो सालों तक चलता, लेकिन पाइप अभी से जवाब देने लगे और गंदा पानी शिप्रा में मिलता है। जबकि कुछ ही दूर दानीगेट पर 70 साल पुराना नाला अब भी काम आ रहा है। रूपेश जोशी गुरु बोले- सिंहस्थ के नाम अधिकारियों ने खूब मनमानी की किसी की नहीं सुनी। सरकार ने तो खूब फंड दिया, लेकिन इसका सदुपयोग कम, दुरुपयोग अधिक हुआ। यही कारण है कि श्रद्धालु आज भी जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं और चाहकर भी कुछ नहीं नहीं पाते।

सूर्यनारायण जोशी लोटा गुरु बोले- नदी व सिंहस्थ क्षेत्र में विकास तो बहुत हुए, इससे लाभ हैं, लेकिन घाट पर इतनी फिसलन है कि रोजाना श्रद्धालु फिसलते हैं। पानी काला है लेकिन आस्थावान लोगों को इससे फर्क नहीं पड़ता, वे तो आचमन कर ही लेते हैं, लेकिन हमें लगता है कि वे किस तरह धार्मिक कर्म व क्रिया पूर्ण करते हैं। शिप्रा की बदहाली व बेइंतजामी पर अनिल शर्मा साइकिलवाला पंडा का भी कुछ यही कहना है। वे कहते हैं मुख्य रामघाट पर ही सफाई के समुचित बंदोबस्त नहीं। कचरा यहां वहां फैला रहता है, किनारे पर गंदगी सड़ांध मारती है। हालांकि ये गलती श्रद्धालुओं की भी है वे शिप्रा में निर्माल्य व सामाग्री डालते ही क्यों हैं।

घाट पर लिखा है कि साबुन से कपड़े ना धोए, लेकिन लोग इसका भी खुलेआम उल्लंघन करते हैं। घाट की चर्चा में शामिल राजेश शास्त्री नाहरवाला ने कहा- व्यवस्थाओं में पहले से सुधार आया है, लेकिन जब तक शिप्रा प्रवाहमान व शुद्ध नहीं रहेगी तब तक किसी भी सुविधा का कोई मोल नहीं, क्योंकि हजारों श्रद्धालु यहां डुबकी लगाकर पाप धोने आते हैं और यदि उनके मन को संतुष्टि ना मिले तो फिर करोड़ों रुपए के खर्च का कोई महत्व नहीं।

करोड़ों खर्च, शिप्रा फिर भी मैली
शिप्रा को प्रवाहमान बनाने सरकार ने नर्मदा-शिप्रा लिंक प्रोजेक्ट पर 450 करोड़ रुपए खर्च किए। गंदे नाले मिलने व ठहरे पानी के कारण मुख्य घाटों पर ही पानी काला है।
इंदौर की खान नदी से कल-कारखानों का दूषित जल शिप्रा में ना मिले इसके लिए डायवर्सन प्रोजेक्ट पर करीब 90 करोड़ रुपए खर्च हुए। खान के छोर से पाइप डालकर कालियादेह पैलेस घाट तक पानी डायवर्ट करना था, लेकिन तकनीकी खामियां रहने से ये फेल साबित हो रहा है।
शिप्रा पर नए घाट निर्माण, लाल पत्थर निर्माण व अन्य बुनियादी विकास कार्यों पर 75 करोड़ से अधिक खर्च हुए। स्थायी विकास होने से इनका लाभ अब भी मिल रहा है।
हर साल शिप्रा की सफाई पर नगर निगम लाखों रुपए खर्च करता है। सफाई प्रायवेट ठेके पर है, समुचित संसाधन भी। लेकिन अपेक्षित सफाई दिखती नहीं।

जीवनरेखा ही वेंटिलेटर पर
शिप्रा को शहर की जीनवरेखा माना जाता है, लेकिन कुछ दिनों को छोड़कर इसकी स्थिति वेंटिलेटर समान रहती है।
घाट पर स्नान, तर्पण के लिए आने वाले छोटी-छोटी समस्याओं के लिए दो-दो हाथ करते हैं।
महिलाओं के कपड़े बदलने के लिए घाट पर समुचित चेंजिंग रूम तक नहीं है।
तैराक दल व घाट पर गहरे पानी का संकेत देने रस्सी नहीं होने से आए दिन लोग डूबने का शिकार होते हैं।

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