बडऩगर : 2013 के वोट
भाजपा – मुकेश पण्ड्या 58679
कांग्रेस – महेश पटेल 45544
निर्दलीय ( भाजपा बागी) – सुकमाल जैन 23089
पण्ड्या व पटेल फिर से दावेदार
पिछले विधानसभा चुनाव में आमने-सामने चुनाव लड़े भाजपा के मुकेश पण्ड्या एवं कांग्रेस के महेश पटेल फिर से टिकट मांग रहे हैं। विधायक पण्ड्या क्षेत्र में किए गए विकास, किसी का बुरा नहीं करने की बात पर फिर से एक बार अवसर मांग रहे हैं। वहीं पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष महेश पटेल कांग्रेस में सबसे ज्यादा 45544 वोट लाने और फिर पांच वर्ष से लगातार सक्रिय होने के चलते टिकट मांग रहे हैं।
मजबूत दावेदार
भाजपा- शांंतिलाल धबाई पूर्व विधायक, तेजसिंह राठौर पूर्व जिलाध्यक्ष भाजयुमो उज्जैन ग्रामीण, जितेन्द्रसिंह पण्ड्या, पूर्व विधायक के पुत्र व युवा नेता।
कांग्रेस- मुरली मोरवाल पीसीसी सदस्य, अक्षयकांति बम पीसीसी सदस्य, राजेन्द्रसिंह सोलंकी जिला पंचायत सदस्य।
यह भी ठोक रहे ताल
सुरेन्द्रसिंह सिसौदिया पूर्व विधायक, कृष्णचंद यादव प्रदेश मंत्री किसान मोर्चा, सोहनसिंह गुर्जर जनपद अध्यक्ष प्रतिनिधि, होशियारसिंह राणावत पूर्व जनपद अध्यक्ष, जितेन्द्रसिंह अहीरखेड़ी।
ये प्रमुख मुद्दे –
उद्योग की मांग, पानी की समस्या, ट्रैफिक व्यवस्था, नगर की प्रमुख सड़कें खराब।
जातिगत समीकरण-
राजपूत एवं ब्राह्मण समाज की बाहुल्यता के चलते इन समाज से प्रत्याशी की प्राथमिकता। विधायक पण्ड्या पर कोई गंभीर आरोप नहीं। इस बार भाजपा के स्थानीय वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी के कारण कांग्रेस को मिल सकता है लाभ।
विधायक की परफार्मेंस- कोई बड़ी उपलब्धि नहीं। आम कार्यकर्ताओं से रखी दूरी।
चुनौतियां
भाजपा- विधायक पण्ड्या से क्षेत्र में अपने ही नेता बड़ी संख्या में नाराज, छोटे कार्यकर्ताओं में भी भारी असंतोष। पहली बार क्षेत्र में भाजपा में भारी गुटबाजी नजर आ रही है।
कांग्रेस- 15 वर्ष से जीत से दूर। गुटबाजी आज भी चरम पर है। यहा देखा गया है कि कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती है।
सपाक्स संरक्षक त्रिवेदी लड़ सकते हैं चुनाव
बडऩगर विधानसभा इस बार सपाक्स संगठन के चलते सुर्खियों में रह सकती है। यहां पर सपाक्स संगठन के संरक्षक और पूर्व आइएएस हीरालाल त्रिवेदी यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। दरअसल, ब्राह्मण और ठाकुर बहुल सीट होने के चलते त्रिवेदी के नाम को लेकर चर्चा चल रही है। अगर ऐसा होता है तो क्षेत्र से भाजपा-कांग्रेस के समीकरण पूरी तरह से गड़बड़ा सकते हैं।
नागदा-खाचरौद विधानसभा : कांग्रेस-भाजपा में फिर होगी सीधी टक्कर
नागदा-खाचरौद विधानसभा में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। पिछले चुनाव में पिछड़े और अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने भाजपा का दामन पकडऩे से तीन बार से जीत रही कांग्रेस को हार देखना पड़ी थी। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत की गृह क्षेत्र वाली इस सीट पर भाजपा को एट्रोसिटी एक्ट व किसानों की नाराजगी के बीच सीट बचाने की जदेजहद है। वहीं कांग्रेस में गुटबाजी से पार पाना होगा। इस बार फिर 2013 की तरह भाजपा से वर्तमान विधायक दिलीप शेखावत व कांग्रेस से दिलीप गुर्जर आमने-सामने हो सकते हैं। हालांकि दोनों ही दलों से नए चेहरे भी टिकट की दौड़ में हैं।
जातिगत समीकरण तय करेंगे जीत-हार
नागदा-खाचरौद विधानसभा में जीत हार के लिए जातिगत समीकरण के खास मायने हैं। विधानसभा में 15 हजार से ज्यादा गुर्जर-गायरी और करीब 25 हजार राजपूत मतदाता हैं। इसके अलावा मुस्लिम मतदाता 23 हजार व एसएसी के 70 हजार हैं। ऐसे में जो पार्टी ज्यादा समाज तक अपनी बात पहुंचाएगी उसके जीत के आसार रहेंगे।
2013 की स्थिति
भाजपा के दिलीप शेखावत- 78 036 मत
कांग्रेस के दिलीप गुर्जर- 6 1921 मत
भाजपा के मजबूत दावेदार
– शोभा यादव, पूर्व नपा अध्यक्ष व वर्तमान में पार्षद
– राजेश धाकड़, मंडल अध्यक्ष
– दयाराम धाकड़, किसान नेता
कांग्रेस के मजबूत दावेदार
-बंसत मालपानी, प्रदेश कांग्रेस सदस्य
-सूर्यप्रकाश शर्मा, खाचरौद क्षेत्र से कांग्रेस के युवा चेहरा, पूर्व एनएसयूआई जिला अध्यक्ष एवं पूर्व उपाध्यक्ष, खाचरौद कृषि उपज मंडी ।
क्षेत्र के मुद्दे- औद्योगिक शहर होने के बावजूद बेरोजगारी। नागदा को जिला बनाने की मांग।
चुनौतियां- पिछले पांच सालों में भाजपा में गुटबाजी बढ़ी है। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत, उनके पुत्र एवं आलोट विधायक जितेन्द्र गेहलोत, नपा अध्यक्ष अशोक मालवीय के अलावा कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त सुल्तान सिंह शेखावत की क्षेत्र की राजनीति में दखल है। वैसे मंत्री गेहलोत की पसंद से ही क्षेत्र में टिकट फाइनल होगा
कांग्रेस- कांग्रेस में गुटबाजी है। दो प्रमुख दावेदार अब तक आमने-सामने रहे हैं। कांग्रेस को किसान, एट्रोसिटी एक्ट व एंटी इंकबेसी के भरौसे है।