ध्वज-अखाड़ों के साथ झांकियां
रंगपंचमी पर शाम को धार्मिक ध्वज अखाडों, गाजे-बाजे और झांकियों के साथ ध्वज चल समारोह निकालने की परंपरा वर्षों से चली आ रहीं है। रियासत काल में विभिन्न क्षेत्र, समाज और संगठनों के बीच खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होता था। इसके विजेता को रियासत की ओर से ध्वज प्रदान किया जाता था। विजेता संगठन की ओर से ध्वज चल समारोह (गेर) निकाली जाती थी। अब खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन तो नहीं होता है, लेकिन उस वक्त की प्रतियोगिताओं के विजेता क्षेत्र, समाज-संगठनों द्वारा आज भी ध्वज चल समारोह की पंरपराओं का पालन किया जा रहा है। रंगपंचमी से चैत्र नवरात्रि तक अलग-अलग संगठनों के ध्वज चल समारोह निकलेंगे।
महाकालेश्वर-वीरभद्र ध्वज चल समारोह
महाकालेश्वर-वीरभद्र ध्वज चल समारोह समिति की आेर से प्रतिवर्ष रंगपंचमी पर्व पर महाकालेश्वर मंदिर से चल समारोह का आयोजन किया जाता है। रंगपंचमी पर शाम को महाकाल मंदिर में भगवान वीरभद्र का पूजन होता है। इसके बाद मंदिर से ध्वज चल समारोह प्रारंभ होता है। चल समारोह में महाकाल मंदिर के पुजारी, पुरोहित, श्रद्धालु शामिल रहेंगे। चल समारोह में 51 ध्वज, चांदी का ध्वज, बैंड, ढोल, ताशा पार्टी, विभिन्न झांकिया भी शामिल रहती है।
निशान भी निकाले जाते है
इसके पहले रंगपंचमी पर सिंहपुरी से सुबह रंग गेर का आयोजन किया जाता है। गेर विभिन्न मार्गों से होकर महाकाल मंदिर पहुंचती है। मंदिर समिति द्वारा ध्वज भेंट जाता है। ध्वज शाम को सिंहपुरी के चल समारोह में शामिल रहता है। सिंहपुरी का चल समारोह गणगौर दरवाजे से निकलता है। इसी तरह कार्तिक चौक का ध्वज चल समारोह शाम को कार्तिक चौक से आयोजित किया जाता है। रंगपंचमी पर भागसीपुरा के निशान भी निकाले जाते है। चल समारोह में ध्वज निशान, बैंड-बाजे, ढोल, विभिन्न अखाड़े, झांकी, गुरु मंडली के युवा शस्त्र प्रदर्शन करते हुए शामिल रहते है।