इस बार विकास के साथ राष्ट्रवाद का मुद्दा
आपातकाल, बोफोर्स कांड आदि के दौरान हुए चुनावों में राष्ट्रवाद, लोकतंत्र की रक्षा जैसे विषय राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे बने हुए थे। इस बार के चुनाव में भी कुछ एेसा ही नजारा है। प्रमुख राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में विकास, जरूरतमंद वर्गों को सहयोग के साथ ही किसी न किसी बहाने राष्ट्रवाद को प्रमुखता से शामिल किया है। अभी स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दल या प्रत्याशियों द्वारा अधिकृत घोषणा पत्र नहीं दिया गया है लेकिन राजनीतिक सभा, बैठक आदि में यही विषय छाए हुए हैं। इसके अलावा स्थानीय मुद्दों के नाम पर फिर उद्योगों को बढ़ावा, पर्यटन नगरी का विकास जैसे बाते उठ रही हैं।
इन मुद्दों के इर्द-गिर्द रहे चुनाव
1957 : मप्र बनने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव था। तब इस चुनाव में पेयजल, उद्योग, सड़क की परेशानी जैसे मुद्दे नहीं थे। सर्वांगीण विकास को देशव्यापी मुद्दा बनाया गया था। मप्र व इस सीट पर भी यही मुद्दा रहा।
1962 : पं. जवाहरलाल नेहरू शहर में थे। तत्कालीन राज्य सभा सदस्य कन्हैयालाल वैध ने उनके सामने शिप्रा में मिलती खान की गंदगी का मुद्दा उठाया था। सिंहस्थ में खान डायवर्सन हुआ लेकिन गंदगी का मुद्दा बना हुआ है।
1967 : यह चुनाव भी राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया। जनता के बीच पंचवर्षीय योजनाएं लाकर लुभाने का प्रयास किया गया। सर्वांगीण विकास की बात ही छाई रही। उल्लेखनीय स्थानीय मुद्दा नहीं था।
1971 : राट्रीय स्तर पर गरीबी हटाओ की बात छाई हुइ थी। नेताओं ने इसे ही भुनाने पर फोकस किया। स्थानीय स्तर पर जिला अस्पताल के सामने मेडिकल कॉलेज बनाने व शिप्रा शुद्धिकरण की मांग उठी। अभी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं बन सका है।
1977 : इमरजेंसी के बाद यह चुनाव होने वाले थे इसलिए लोकतंत्र को बचाना एक बड़ा मुद्दा बना हुआ था। एेसे में पूरे देश सहित उज्जैन में भी आपातकाल विरोधी लहर थी।
1980 : इस चुनाव के दौरान सिंहस्थ भी था। बड़े आयोजन और बढ़ते शहर के चलते जलापूर्ति बढ़ाने की मांग उठी। पानी की समस्या प्रमुख थी और गंभीर डैम बनाने का प्रस्ताव आया। साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देने की मांग उठने लगी।
1984 : इंदिया गांधी की हत्या होने के कारण इस समय लोकसभा को शोक सभा के रूप में देखा गया। स्थानीय स्तर पर उद्योगों की बिगड़ती साख जनता व राजनीतिक दलों के बीच मुद्दा बना। पर्यटन को बढ़ाने की बात फिर सामने आई।
1989 : देश में बोफोर्स कांड छाया हुआ था, यही चुनावी मुद्दा भी बना। इसलिए चुनावी पर अन्य मुद्दों विशेष असर नहीं छोड पाए। हालांकि राजनीतिक सभाओं में पानी, पर्यटन, उद्योगों की चर्चा बनी रही।
1991: राजीव गांधी की हत्या होने के कारण स्थानीय से अधिक राष्ट्रीय विषय छाया रहा। स्थानीय स्तर पर उद्योगों के बिगड़ते हालात का मुद्दा चुनावी सरगर्मी बढ़ाता रहा। बावजूद उद्योग बंद होते रहे।
1996 : उद्योगों के बिगड़ते हालात और एक के बाद एक इनका बंद होना, प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा। चुनावी सभाओं में इसी का शोर अधिक सुनाई दिया। इसके अलावा पानी की समस्या, शैक्षणिक क्षेत्र में सुधार आदि की बातें भी हुई।
1998 : शहर में बंद हुई मिलों के मजदूरों को उनका हक दिलाने के वादे और दावे, चुनावी मुद्े के रूप में ताकत से उभरे। राजनीतिक दल व प्रत्याशियों ने मजदूरों पर खास ध्यान दिया। हालांकि आज भी हजारों श्रमिकों को उनका बकाया नहीं मिला है।
1999 : इस समय फिर दल विशेष के पक्ष में सहानुभूति का माहौल बना था। स्थानीय मुद्दों में विकास की बातें हुई। पानी की आपूर्ति, मजदूरों को हक दिलाने के साथ बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बना।
2004 : शहर को पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने की मांग तेज हुई तो इसको लेकर राजनीतिक दल व प्रत्याशियों ने वादे भी खूब किए। रोजगार बढ़ाने के लिए बंद उद्योगों के विकल्प व नए उद्योगों की शुरुआत मुद्दा बना।
2009 : उद्योग धंधों को विकसित करना, रेलवे सुविधा में सुधार, स्वास्थ्य, शिक्षा में कार्य, रोजगार को बढ़ावा देने जैसे विषय चुनावी मुद्दे बने।
2016 : सिंहस्थ के लिए कार्य शुरू हो चुके थे। शिप्रा शुद्धिकरण, पर्यटन को बढ़ावा मुख्य मुद्दा रहा। नए उद्योग लाने के दावे भी हुए।