दुनिया के हर देश में ऐसा नहीं होता है. पृथ्वी के सिर्फ उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में ही ऐसा होता जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में इसके विपरीत स्थिति होती है और वहां यह सबसे बड़ा दिन होता है. पृथ्वी अपने अक्ष पर साढ़े तेइस डिग्री झुकी हुई है जिसकी वजह से सूर्य की दूरी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध से ज्यादा हो जाती है. इससे सूर्य की किरणों का प्रसार पृथ्वी पर कम समय तक होता है.
इस दिन सूर्य की किरणें मकर रेखा के लंबवत होती हैं और कर्क रेखा को तिरछा स्पर्श करती हैं. इस वजह से सूर्य जल्दी डूबता है और रात जल्दी हो जाती है. यानी पृथ्वी जब अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है तो किसी एक जगह पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें दिन के अंतराल को प्रभावित करती हैं जिस कारण दिन छोटा और बड़ा होता है.
साल के इस सबसे छोटे दिन को खगोल विज्ञान की भाषा में विंटर सॉल्सटिस (Winter solstice) कहते हैं. हर साल ये दिन बदलता रहता है. खगोलविज्ञानियों के अनुसार आमतौर पर 21 दिसंबर या 22 दिसंबर को ये दिन आता है. पिछले साल भी ये दिन 22 दिसंबर को ही था.
जीवाजी वेधशाला के अनुसार 22 दिसंबर को उज्जैन में सूर्याेदय 7 बजकर 5 मिनट पर और सूर्यास्त 5 बजकर 46 मिनट पर होगा. इस तरह 22 दिसंबर को दिन की अवधि 10 घंटे 41 मिनट और रात की अवधि 13 घंटे 19 मिनट की होगी.
इससे उत्तरी गोलार्द्ध में 22 दिसंबर को सबसे छोटा दिन और सबसे छोटी रात होगी। सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर लंबवत होगा। इस दिन शंकु की छाया सबसे लंबी होकर पूरे दिन मकर रेखा पर गमन करती हुई दिखाई देगी। इस दिन सूर्य की कांति 23 अंश 26 कला 14 विकला दक्षिण होगी।