आश्रम करीब 5 हजार 273 वर्ष प्राचीन है
पुजारी रूपम व्यास ने बताया यह आश्रम करीब 5 हजार 273 वर्ष प्राचीन है। जहां गुरु सांदीपनि की प्रतिमा के समक्ष चरण पादुकाओं के दर्शन होते हैं। यहीं रहकर श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी। यहां भगवान श्रीकृष्ण की बैठी हुई प्रतिमा है, जबकि बाकी अन्य मंदिरों में वे खड़े होकर बांसुरी बजाते नजर आते हैं। भगवान कृष्ण बाल रूप में हैं, उनके हाथों में स्लेट व कलम दिखाई देती है, जिससे प्रतीत होता है, कि वे विद्याध्ययन कर रहे हैं।
ऐसे दी जाती थी अक्षरारंभ की दीक्षा
ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया अक्षरारंभ की परिपाटी जहां-जहां गुरुकुल होते थे, वहां-वहां प्रचलित थी। बड़ी सी पट्टी (फर्शी) पर गुलाल बिखेरकर दीक्षा लेने वाले बच्चे के हाथ में अनार की डंडी पकड़ाई जाती और हाथ पकड़कर सबसे पहले श्री लिखवाया जाता था। फिर गणेशाय नम:, सरस्वत्यै नम: लिखाते थे। अनार की डंडी इसलिए दी जाती थी, क्योंकि बारहखड़ी में सबसे पहला अ से अनार ही सिखाया जाता है।
आज भी मुहूर्त के मुताबिक दी जाती है दीक्षा
पं. व्यास का कहना है कि आज भी पहली बार स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता हमारे पास उन्हें लाते हैं, तो उनसे यही कहा जाता है कि मुहूर्त के अनुसार ही आप इन्हें यहां लाएं, ताकि इनका विधिवत अक्षरारंभ हो सके।
इसलिए पड़ा मार्ग का नाम अंकपात
भगवान श्रीकृष्ण जब पट्टी (स्लेट) पर जो अंक लिखते थे, उन्हें मिटाने के लिए वे जिस गोमती कुंड में जाते थे, वह कुंड यहां आज भी स्थापित है। अक्षरों का पतन अर्थात धोने के कारण ही यहां से गुजरने वाले मार्ग को अंकपात मार्ग के नाम से जाना जाता है।