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उज्जैन

मंदिर, मस्जिद दूर है…चलो किसी रोते हुुए बच्चे को हंसाया जाए

नि:स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे सार्थक ग्रुप का समापन हो गया

उज्जैनMay 19, 2018 / 12:37 am

Lalit Saxena

patrika

नि:स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे सार्थक ग्रुप का समापन हो गया

नागदा. मंदिर मस्जिद बहुत दूर है…चलो किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाएं… उक्त सोच रख नि:स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे सार्थक ग्रुप का समापन हो गया है। इतना ही नहीं, सड़कों पर भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों पर अब कोई लगाम नहीं कस सकेगा। कारण उक्त बच्चों को सड़कों से उठाकर घर में रखने वाले सार्थक ग्रुप को समाप्त कर दिया गया है। अब शहर की सड़कों पर पुन: बच्चों की टोलियां भिक्षावृत्ति करती नजर आएगी। ऐसा इसलिए कि ग्रुप का संचालन करने वाले मनोज राठी ने अब तक १३ बच्चों को घर व स्कूली शिक्षा मुहैया करवाई है। इनमें ऐसे बच्चों का समूह शामिल है जो सड़कों पर भीख मांगते थे या जिनके माता-पिता उन्हें भिक्षावृत्ति के लिए प्रेरित करते थे। इतना ही नहीं ऐसे लोग जो गंभीर बीमारियों से पीडि़त थे राठी ने उनका उपचार भी स्वयं राशि खर्च कर करवाया है लेकिन अब केवल गोद लिए हुए १३ बच्चों का भविष्य ही मनोज राठी २१ वर्ष की आयु तक संवारेंगे। सार्थक ग्रुप बंद करने का उद्देश्य शहरवासियों द्वारा ग्रुप के बारे में नकारात्मकता फैलाना है। ऐसे में राठी ने चार वर्षों के सभी लेखा जोखा को सार्वजनिक कर ग्रुप के समापन की घोषणा कर दी है।
गरीब बच्चों के लिए ५० लाख का स्कूल : राठी परिवार की ओर से शहर में एक स्कूल का संचालन किया जाता है। जिसमें निर्धन व गरीब परिवार के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। बच्चों को यूनिफार्म भी स्कूल प्रबंधन द्वारा दी जाती है। स्कूल के संचालन पर राठी परिवार द्वारा प्रतिमाह ५० हजार रुपए खर्च किया जाता है। मानवता शिक्षण समिति द्वारा संचालित स्कूल के संचालक मनोज बारदाना प्रॉपटी का व्यवसाय करते हैं। पिता को समर्पित स्कूल के संचालन पर आने वाले ५ लाख रुपए के सालाना खर्च के लिए यह परिवार सरकारी या किसी दानदाता की मदद भी नहीं लेता। मनोज बताते हैं हम चार भाइयों ने वर्ष भर की कमाई से ही स्कूल संचालन का कार्य करते हैं।
घर से प्रताडि़ता बच्चों का लिया जिम्मा
सार्थक ग्रुप संचालक मनोज राठी ने १५ सितंबर २०१६ से घर से प्रताडि़त भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों का जिम्मा लिया। जिनकी संख्या आज १३ है। उक्त बच्चों का २१ वर्ष की आयु तक खान-पान व पढ़ाई लिखाई का जिम्मा मनोज राठी स्वयं वहन करेंगे। इसके लिए वे किसी जनसहयोग की मदद नहीं लेगें। ग्रुप द्वारा बीते चार वर्षों में विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्य कर १२ लाख ६९ हजार ४८९ रुपए संरक्षित की गई थी। उक्त राशि में से विभिन्न प्रकार के सेवा कार्य किए गए जिसके बाद शेष ५ लाख ५५ हजार ३५९ रुपए की राशि शेष बची है। अब राठी चाहते है, कि बची हुई राशि को कहा पर खर्च किया जाए जिसके लिए वे शहरवासियों से राय मांग रहे हैं।
तकदीर की मारी गुलशन बी का बने सहारा
तकदीर की मारी गुलशन बी, पहले पति की प्रताडऩा शिकार हो चुकी है। पीडि़ता के घर आठ वर्षों से छत नहीं थी। सूचना पर मनोज राठी व मनीष चपलोद ने पीडि़ता का अशियाना ठीक करवाकर मदद की। उक्त दोनों व्यक्तियों ने ग्रुप के माध्यम से महिला की परेशानी का हल किया था। जबकि शहर में विभिन्न प्रकार की सामाजिक संस्थाएं कार्य कर रही थी, लेकिन कोई आगे नहीं आ सका। महिला के घर बिजली कनेक्शन भी नहीं था, जिसे सार्थक ग्रुप सदस्यों ने लगवाया।

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