scriptसिद्ध विनायक गणेश मंदिर : आस्था और मनोकामना का बंधन… कार्य सिद्ध होने की पहचान बन गया रेशम का धागा | The devotees bend the red-yellow silk on their wrists | Patrika News
उज्जैन

सिद्ध विनायक गणेश मंदिर : आस्था और मनोकामना का बंधन… कार्य सिद्ध होने की पहचान बन गया रेशम का धागा

महाकाल मंदिर स्थित सिद्ध विनायक गणेश मंदिर में रोज सैकड़ों श्रद्धालु अपनी कलाई पर बंधवाते हैं लाल-पीली रेशम की डोर, मन्नत पूरी होने के बाद आते हैं खुलवाने

उज्जैनJul 13, 2019 / 10:28 pm

Lalit Saxena

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उज्जैन. आपके हाथों में नया और चमकीला लाल-पीला रेशम का बंधन है तो कोई भी यह देखकर तत्काल बोल देता है… क्यों गुरु महाकाल मंदिर हो आए क्या? बात महाकाल मंदिर परिसर स्थित सिद्ध विनायक गणेश मंदिर में मनोकामना लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की हो रही है, जो दर्शन के बाद अपनी कलाई पर बड़ी आस्था के साथ रेशम का बंधन बंधवाते हैं।

राजाधिराज महाकाल के दर्शन के बाद मस्तक पर लगा चंदन का तिरपुण्ड इस बात का हर किसी को आभास करता देता है कि श्रद्धालु बाबा के दरबार से आ रहा है। महाकाल भक्त की एक दूसरी पहचान भी बन गई है और वह है मंदिर परिसर में स्थापित प्राचीन सिद्ध विनायक गणेश मंदिर में श्रद्धालुओं की कलाई में बांधे जाने वाला बंधन। महाकाल मंदिर जाने वाले अपनी कलाई पर लाल-पीला बंधन बंधवाने के मोह से बच भी नहीं पाते हैं। स्थिति यह है कि खासकर युवा आस्था के इस धागे को कलाई के सौंदर्य के तौर पर बड़ी शान से अपने हाथों में धारण करते हैं। इस बंधन पर श्रद्धालुओं की कितनी आस्था है यह अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि सामान्य दिनों में करीब २५ हजार मीटर रेशमी धागे की खपत हो जाती है।

वर्षों चली आ रहीं परंपरा
मंदिर के पुजारी चम्मू गुरु के अनुसार सिद्ध विनायक गणेश मंदिर में राजा भृतहरि द्वारा पाषण की प्रतिमा स्थापित की गई थी। प्राचीन समय से यहां आने वाले श्रद्धालु कच्चे सूत का धागा बंधवाते थे। बाद में इसका स्थान पचरंगी धागे ने ले लिया। समय बदला तो श्रद्धालुओं की मंशा अनुसार लाल-पीले रेशमी डोर का उपयोग किया जाने लगा है। पहले भी इसका कोई शुल्क नहीं लिया जाता था और वर्तमान में भी कोई शुल्क नहीं है। भक्त अपनी आस्था से भगवान को अपर्ण करते हैं।

आस्था तो है भावना और मनोकामना भी है। मान्यता के अनुसार अनेक श्रद्धालु गणेशजी के समक्ष आपनी मनोकामना लेकर बंधन धारण करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर भगवान के समक्ष ही बंधन को खोलते हैं या बदलते हैं। पुजारी चम्मू गुरु बताते हैं कि कई श्रद्धालु है, जिनका १०-१२ वर्षों बाद मंदिर आना हुआ तब उन्होंने बंधन खोला या बदला है। अनेक श्रद्धालु प्रति सप्ताह या फिर प्रति माह आकर बंधन खोलते/बदलते हैं।

खास बात
– एक किलो की लच्छी में २०० मीटर धागा।
– प्रतिदिन औसतन २५ किलो खपत, यानी २५ हजार मीटर का उपयोग।
– मंदिर में अवसर विशेष पर श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने पर बंधन का कार्य रो दिया जाता है।

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