गांव भीलखेड़ा में 2007 में हाईस्कूल की सौगात मिल गई थी, लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के कारण 15 वर्ष बाद भी हाईस्कूल को खुद का भवन नहीं मिल पाया है। 2007 से ही माध्यमिक विद्यालय में हाईस्कूल की कक्षाएं लग रही है। दो कमरों के भवन में पांच कक्षाएं सुचारू रूप से संचालित करना किसी परेशानी से कम नहीं है। दो पाली में कक्षाएं लगती है, जिसमें पहली पाली में सुबह 7.30 बजे से दोपहर 2 बजे तक हाई स्कूल के छात्र और दूसरी पाली में सुबह 10 बजे से 4.30 बजे तक माध्यमिक के विद्यार्थियाें को पढ़ाया जाता है।
टीचरों की भी समस्या
सड़क की समस्या सिर्फ स्कूली बच्चों तक ही सीमित नहीं है। स्कूल में पढ़ाने के लिए अधिकतर शिक्षक उज्जैन से आते है। सामान्य दिनों में तो शिक्षक पानबिहार से मीण होते हुए स्कूल पहुंचते है, लेकिन बारिश में पानबिहार-बिहारिया-कालूहेड़ा होते हुए स्कूल पहुंचते है। शिक्षकों को दूरी भी ज्यादा तय करना पड़ती है और समय भी ज्यादा लगता है।
बाहर से ज्यादा आते हैं बच्चे
हाईस्कूल और माध्यमिक स्कूल में भीलखेड़ा से ज्यादा आसपास के गांव से ज्यादा बच्चे पढ़ने आते है। हाईस्कूल होने के कारण सुतारखेड़ा, मीण, मेलानिया, बोरखेड़ी, किशनपुरा से बच्चे आते है, लेकिन सड़क की समस्या पढ़ाई में बाधा बन जाती है। यहीं कारण है कि धीरे-धीरे बाहरी बच्चों की संख्या कम होती जा रही है।
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मुरम का पैंचवर्क भी बेअसर
पूरी बारिश में पंचायत की ओर से जरूर एक-दो बार मुरम डालकर गड्ढों को भरा जाता है, लेकिन यह मुरम कुछ घंटों में ही गड्ढों में तब्दील हो जाती है। सड़क पक्की बन जाती है तो बच्चों के साथ-साथ कई गांवों के ग्रामीणों को इसका लाभ मिलेगा।