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उज्जैन

संस्कृत के विवाद में फंसी पीएचडी की प्रवेश परीक्षा

लगभग विभागों ने जानकारी भेजी, कमेटी की बैठक को अनुमति नहीं

उज्जैनJun 14, 2019 / 08:45 pm

Lalit Saxena

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उज्जैन. विक्रम विश्वविद्यालय में शोध पाठ्यक्रम प्रोफेसरों की गुटबाजी के चलते प्रभावित होने की परंपरा बनती जा रही है। अब ताजा विवाद संस्कृत विषय का सामने आया है। इसमें रिक्त सीट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। इसके चलते पूरी प्रवेश परीक्षा की तैयारियों को रोक दिया गया है। प्रवेश परीक्षा आयोजन समिति की बैठक के लिए अनुमति नहीं दी गई और फिर से रिक्त सीट की जानकारी जुटाने के लिए कहा गया। एेसे में प्रवेश के लिए इच्छुक विद्यार्थी अब विवि के चक्कर लगाकर परेशान हो रहे हैं और अन्य विश्वविद्यालय की तरफ रूख करने लगे हैं। इसके पीछे कारण लगभग सभी विवि समय पर पीएचडी प्रवेश परीक्षा आयोजित करवा लेती है, लेकिन विक्रम हर सत्र में पिछड़ जाता है। विवि के कुलसचिव डीके बग्गा का कहना है कि पीएचडी प्रवेश परीक्षा की तैयारी जारी है। जल्द ही विज्ञापन जारी होगा।

कैसे उलझ रही प्रवेश परीक्षा

विवि के पीएचडी विभाग ने सभी अध्ययनशलाओं से विषयवार पीएचडी की रिक्त सीट की जानकारी मांगी। विभागों ने देर सवेर रिक्त सीट की जानकारी भेज दी। इसमें दो विभागों में स्थिति उलझी। पहला विषय था प्रबंधन, दरअसल विभाग के प्रोफेसर रवींद्र जैन का निधन हो गया है। इनके अधीन आवंटित शोधार्थियों को अन्य प्रोफसर को दिया जाएगा। एेसे में अब प्रबंधन विषय में रिक्त सीट नहीं है। दूसरा विषय था संस्कृत, तीन अध्ययनशाला (संस्कृत, वेद, ज्योतिर्विज्ञान) में एक शिक्षक डॉ. राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर हैं। इन्होंने रिक्त सीट की जानकारी भेज दी। पूर्व में सिंधिया प्राच्य संस्थान के डॉ. बालकृष्ण शर्मा (वर्तमान कुलपति) और सुधाशु रथ भी उक्त विभाग के माध्यम से शोध कार्य करवाते थे। अब पीएचडी के नए अध्यादेश को लेकर शोध निदेशक को लेकर उलझन है। डॉ. मुसलगांवकर ने अपने विभाग की जानकारी भेज दी है। अब पीएचडी विभाग ने संस्कृत की जानकारी को अधूरा बताकर फिर से जानकारी मांगी है।

निदेशक से नहीं लेते हैं जानकारी

विक्रम विवि में प्रत्येक विषय से संबद्ध पीएचडी शोध निदेशक है। इनकी पदस्थापना अलग-अलग शोध केंद्र पर है। विवि प्रशासन हर बार संस्थान के प्रमुखों को पत्र भेजकर जानकारी मांगता है। इसके चलते विवाद की स्थिति निर्मित होती है। कई बार शोध निदेशक कार्य करवाने को तैयार नहीं होता है, लेकिन उसकी सीट विज्ञापति हो जाती है। हर बार विषय आता है कि समस्या के समाधान के लिए शिक्षकों से ही जानकारी मंगवा ली जाए, लेकिन एेसा होता नहीं है।

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