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उज्जैन शहर पिछड़ रहा इस मामले में

व्यावसायिक, रोजगारोन्मुखी, प्रतियोगी पढ़ाई के लिए नहीं पर्याप्त साधन और सुविधा

उज्जैनSep 08, 2019 / 12:44 am

Mukesh Malavat

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उज्जैन. आज के इस प्रतिस्पर्धी दौर में भी उज्जैन शहर उच्च शिक्षा के मामले में पीछे ही है। हायर सेकंडरी के बाद युवा व्यावसायिक, रोजगारोन्मुखी, प्रतियोगी पढ़ाई के लिए महानगरों की ओर पलायन कर रहा है। साक्षरता के लिए उज्जैन जिले की बात करें तो इसकी दर बेहतर ही है पर उच्च शिक्षा के बाद भी अच्छे भविष्य के लिए युवा शहर में नहीं ठहर रहे हैं।
उज्जैन भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली है। यहां की शिक्षा, दीक्षा की श्रेष्ठता को लेकर सवाल उठाना वाजिब नहीं है पर साधन, सुविधा और श्रेष्ठता की तलाश में युवा व्यावसायिक, रोजगारोन्मुखी, प्रतियोगी पढ़ाई और तैयारी के लिए इंदौर, पुणे, बैंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली, कोटा की ओर रुख कर रहे हैं। हायर सेकंडरी के बाद शहर में करीब 35 से 40 प्रतिशत युवा आगे की पढ़ाई के लिए अन्य शहर का चयन करते हैं। जानकारों के अनुसार इसकी खास वजह बड़े शहर के प्रति आकर्षण के साथ वहां की शिक्षा का उच्चततम स्तर है। इसके अलावा नामी और बड़ी कंपनियों के अच्छे पैकेज पर प्लेसमेंट के अवसर उज्जैन की तुलना में अन्य शहरों में अधिक मिल जाते हैं। हालांकि यहां के बच्चे उच्च पदों को हासिल करने के साथ आने प्रदर्शन से उज्जैन का नाम रोशन कर रहे हैं।
प्रदेश की साक्षरता दर से कुछ ही कम
साक्षरता के मामले में उज्जैन की स्थिति प्रदेश से कुछ ही कम है। प्रदेश की साक्षरता दर 70.60 प्रतिशत है और उज्जैन जिले की साक्षरता दर 65.89 प्रतिशत है। शिक्षा को लेकर जिले में काफी प्रयास हुए हैं और चल भी रहे हैं। इनके बीच शहर के आसपास बसे गांव के परिवार के कई ऐसे लोग हैं, जहां लोग शिक्षा से दूर हैं।
इसलिए मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस
8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस है। यह मानव विकास और समाज में उनके अधिकारों को जानने और साक्षरता की तरफ मानव चेतना को बढा़वा देने के लिए मनाया जाता है। इस बात को समझना जरूरी है कि सफलता और जीने के लिए साक्षर होना जरूरी है। देश से बाल श्रम, गरीबी, जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण जैसी समस्याओं से निजात पाना बेहद जरूरी है। यह क्षमता सिर्फ सारक्षता में है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकती है। यह दिवस परिवार और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी को समझने के लिए मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत यूनेस्को में 1996 में हुई थी।
जागरुकता के अलावा प्रोत्साहन देना होगा
साक्षरता बढ़ाने के लिए लोगों के बीच जागरुकता के साथ युवाओं को प्रोत्साहन देना होगा। हमारे यहां ज्यादातर स्कूलों का समय सुबह में शुरू होता है और दिन के 2-3 बजे समाप्त हो जाता हैं। ऐसे में इन गरीब बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना मुमकिन नहीं होता है। दरअसल जो स्कूल का समय होता है, उस दौरान बच्चे काम कर रहे होते हैं। ऐसे में स्कूलों के शेड्यूल को लचीला बनाया जाना चाहिए ताकि वे पढ़ाई कर सकें। गरीबी की कारण बच्चों की बड़ी संख्या को भरण-पोषण के लिए काम करना पड़ता हैं।
डॉ. निर्दोष पाठक निर्भय, समाजसेवी और अभिभाषक
साधन, सुविधाओं की दरकार
साक्षरता बढ़ाने के साथ ही युवाओं को शहर में अध्ययन के लिए साधन, सुविधाओं की दरकार है। वर्तमान संस्थाओं की अधोसंरचना के विस्तार के साथ युवाओं को आकर्षित करने के लिए नवाचार भी जरूरी है। जिले की साक्षरता की स्थिति अच्छी है। इसे और बेहतर बनाने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए।
प्रो. नागेश शिंदे, आचार्य, विक्रम विश्वविद्यालय

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