उज्जैनPublished: Feb 04, 2019 12:46:32 am
Lalit Saxena
कैंसर का शब्द सुनते ही आदमी रोम-रोम थर्राने लगता है। इस असाध्य रोग को हराकर पुन: स्वस्थ होकर पुरानी दिनचर्या जैसा जीवन जीने के लिए आत्मविश्वास चाहिए।
कैंसर का शब्द सुनते ही आदमी रोम-रोम थर्राने लगता है। इस असाध्य रोग को हराकर पुन: स्वस्थ होकर पुरानी दिनचर्या जैसा जीवन जीने के लिए आत्मविश्वास चाहिए।
बडऩगर. राजेंद्र अग्रवाल
कैंसर का शब्द सुनते ही आदमी रोम-रोम थर्राने लगता है। इस असाध्य रोग को हराकर पुन: स्वस्थ होकर पुरानी दिनचर्या जैसा जीवन जीने के लिए आत्मविश्वास चाहिए। ऐसा ही आत्मविश्वास दिखाया है तहसील के ग्राम लोहना में रहने वाले अभिभाषक रामेश्वर यादव (६६) ने। उनको 2011 में जबड़े में कैंसर हुआ था, लेकिन उन्होंने गंभीर बीमारी से हार न मानते हुए इस पर विजय प्राप्त की।
यादव ने पत्रिका को बताया कि वे गुटखा, पाउच, तंबाकू का सेवन करते थे। 2011 में जबड़े में दर्द हुआ। डॉक्टर ने जांच में कैंसर होना बताया। इसके बाद ऑपरेशन कराया और करीब तीन माह तक 33 (सेक) कीमोथैरेपी कराते हुए उपचार जारी रखा। यादव ने बताया बीमारी के दौरान वजन करीब 20 किलो तक घट गया था लेकिन मैंने हार नहीं माना। आज मेरा वजन करीब 70 किलो हो गया है और मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूं।
कभी नहीं हुआ निराश
यादव ने बताया कि कैंसर सामने से आता है लोग इससे डर जाते हैं और निराश होकर हार मान लेते हैं, लेकिन मैं इससे नहीं डरा और इसका सामना किया। बीमारी के कारण दैनिक जीवन में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं आया।
30 किमी बुलेट चलाते हैं
यादव 40 वर्षों से बडऩगर अभिभाषक संघ के सदस्य हैं। कैंसर होने के बाद भी उन्होंने वकालत का कार्य बंद नहीं किया। वे रोज लोहाना से सुबह 10 बजे बुलेट लेकर बडऩगर न्यायालय आते है और पैरवी कर शाम 5 बजे लौटते हैं।
अलसी, गेहूं के ज्वारे और तुलसी का करते हैं प्रतिदिन सेवन
यादव ने बताया कि मैं अब किसी भी प्रकार इलाज व दवाई नहीं लेता हूं। दवाई के नाम पर घरेलू नुस्खे अलसी का पाउडर, गेहूं के ज्वारे और तुलसी के पत्तों का सेवन प्रतिदिन करता हूं। बीमारी के बाद ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने इनका सेवन न किया हो। बीमारी के बाद ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने इनका सेवन न किया हो।