किसी का बेस नहीं बना तो कहीं एजेंसी ने छोड़ा कामकई सालों से गांवों में अधूरे हैं काम
उमरिया•Nov 17, 2019 / 10:14 pm•
ayazuddin siddiqui
एक दशक से अधर में अटके हैं 116 करोड़ के प्रोजेक्ट
उमरिया. जल संसाधन विभाग के116 करोड़ के प्रोजेक्ट सालों से आधे अधूरे पड़े हुए हैं। कहीं बेस लेबल का कार्य हुआ है तो कहीं फुल रिजर्व लेवल स्तर तक कार्य पहुंच चुका है। अब आखिरी दौर में कार्य अटकने से स्थानीय लोगों का विकास प्रभावित हो रहा है। दूसरी ओर निर्माण एजेंसियां बीच में ही कार्य छोड़कर जा चुकी हैं। जल संसाधन विभाग अनुसार इन कार्यों में तीन तो ऐसे हैं जो 2012 से प्रारंभ हुए थे। बेस लेवल तक कार्य भी हो चुका है। आखिरी चरण में अनुमति के फेर में फिनशिंग टच अटका हुआ है। मानपुर क्षेत्र में भड़ारी जलाशय 2012 में सवा छह करोड़ की लागत से बनना था। वर्तमान में 4 करोड़ खर्च करने के बाद आधा काम हुआ है। जमीन निर्धारण को लेकर मामला 8 साल से लंबित है। इसी तरह वनदेही जलाशय भी 2012 में ही प्रारंभ हुआ था। बांध व नहर के कार्य में 10 करोड़ खर्च कर बांध व नहर का कार्य हुआ। शेष कार्य के लिए अनुमति व दोबारा टेण्डर जारी हुआ है। यही हाल पटपरिहा पाली जनपद का है। यहां फारेस्ट एरिया की अनुमति के चलते 6.10 करोड़ का प्रोजेक्ट अधूरा है। यहां भी आधा से अधिक कार्य हो चुका है। मानपुर के अलावा करकेली जनपद के चार बांध चार साल से अधूरे पड़े हुए हैं। 34.50 करोड़ की लागत से मगर जलाशय में आधे से अधिक कार्य होना शेष है। चंगेरा में साल 2017 से 50 करोड़ में बांध की स्वीकृति है। 20 करोड़ की लागत वाले खोह टैंक, अतरिया 30.50 करोड़ बांध व नहर का कार्य भी अधूरा है। इस परियोजना में 1700 एकड़ सिंचाई होनी है। 3 करोड़ रुपए का अवार्ड मप्र. शासन भू-धारकों को दे चुकी है। पर्यावरण अनुमति में बात अटकी हुई है। किसी भी परियोजना में वन भूमि फंसने पर अनुमति ली जाती है। प्रोजेक्ट के तहत यदि एक हेक्टेयर का रकबा है तो स्थानीय स्तर पर औपचारिकता पूर्ण कर हरी झण्डी दे दी जाती है। पांच हेक्टेयर के लिए पीसीसीएफ व रिजनल स्तर तक फाइलें जाती है। यदि इससे बड़ा रकबा है तो फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सक्षम प्राधिकार कमेटी दिल्ली के पास अनुमति का अधिकार है। ये प्रक्रिया वन विभाग के ऑनलाईन एप के माध्यम से होती है। 60 दिन के भीतर स्थानीय कार्यालय जानकारी अधूरी होने पर विभाग को सूचित करता है यदि समय पर सुधार नहीं हुआ तो प्रोजेक्ट एप स्वत: ही रिजेक्ट कर देता है।
प्रभावित हो रहे स्थानीय लोग
प्रोजेक्ट शुरू होना और फिर समय पर पूरा न होने से सर्वाधिक नुकसान स्थानीय लोगों का होता है। ग्रामीणों की जमीन भी अधिगृहित कर ली जाती है। भू-अर्जन में पेंच फंसा तो लोग अधर में अटक जाते हैं। रोजी रोटी का साधन भी छिन रहा है। साथ ही पुर्नवास में नई जगह बसने बुनियादी सुविधा व कागजी कार्रवाई में लंबा अरसा बीत जाता है।
इनका कहना है
संरक्षित क्षेत्र में अनुमति देने का कार्य हमारा नहीं स्टेट बोर्ड तथा सुको. की केन्द्रीय कमेटी करती है। इसके लिए ऑन लाइन आवेदन करना पड़ता है। वहां से प्राप्त निर्देश के आधार पर स्पेक्शन होता है।
विसेंट रहीम, संचालक बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व
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भड़ारी में हमारे यहां से अनुमति दी जा चुकी है। करकेली के पास मगर डैम की अधूरी जानकारी लेकर आए थे। उसमे एफटीएल के रिकार्ड नहीं थे। पटपरिया व खोह टैंक को लेकर मैं यथा स्थिति पता करवाता हूं।
आरएस सिकरवार, डीएफओ
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गांव में बांध निर्माण के दौरान कुछ किसानों की जमीन का अधिगृहण हो चुका है। हमारी भूमि में कार्य चल रहा है। मामला लंबित होने से भुगतान अटका है। दूसरी जगह जाकर जीविकोपार्जन भी नहीं कर पा रहे।
गोरेलाल ग्रामीण, ग्रामीण
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हमारे 15 में से 7 कार्य ऐसे हैं, जिनमे वन विभाग की अनुमति मिलना शेष है। इनमे कुछ 2012 के हैं। कलेक्टर की पहल पर वन विभाग के साथ संयुक्त प्रयास शुरू किया गया है। कुछ में अनुमति भी मिलने की स्थिति आखिरी पड़ाव पर है।
आरसी तिवारी, कार्यपालन यंत्री, जल संसाधन विभाग उमरिया।