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उमरिया

सम्राट अशोक की तरह महाराजा मार्तण्ड सिंह का हुआ था हृदय परिवर्तन

गर्भवती बाघिन की मौत के बाद शिकार से ले लिया था संन्यास, दान कर दी संपत्ति

उमरियाNov 15, 2019 / 10:39 pm

ayazuddin siddiqui

Like Emperor Ashoka, Maharaja Martand Singh had a change of heart

सम्राट अशोक की तरह महाराजा मार्तण्ड सिंह का हुआ था हृदय परिवर्तन

उमरिया. कहते है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, कलिंग के युद्ध के दौरान हुए रक्तपात और मानव विनाश को देखने के बाद जिस तरह सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तित हुआ ,और उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। इसी तरह की एक ऐतिहासिक घटना उमरिया जिला स्थित बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व के आस्तित्व में आने से जुड़ी हुई है। रीवा रियासत के तत्कालीन महाराजा मार्तण्ड सिंह ने 21 जनवरी 1954 को पनपथा सेंचुरी में बाघिन चौरा के पास अपनी बंदूक से बाघिन का शिकार किया, और वह बाघिन डेढ़ मील जाकर मर गई। बाद में जब बाघिन का शव महाराजा के पास लाया गया तो पता चला कि वह गर्भवती थी। इस घटना ने महाराजा के हृदय को परिवर्तित किया और उन्होने अपनी निजी संपत्ति बांधवगढ़ के जंगल वन्य जीव एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए दान करने का मन बना लिया। बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व की स्थापना के इतिहास के पन्नों मे दर्ज दस्तावेजों का अध्ययन करें तो 1967 में महाराजा मार्तण्ड सिंह ने मप्र शासन को 105 वर्ग किमी का जंगल सशर्त सौंपा और 1968 में मप्र शासन ने नोटीफिकेशन के जरिए बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व की स्थापना की। कालांतर में भारत सरकार ने 1993 में इसे टाईगर प्रोजेक्ट बना दिया और वर्ष 2013 में सरकार ने नोटीफिकेशन कर बांधवगढ़ टाईगर रिवर्ज का रकबा बढ़ाकर 1540 वर्ग किमी कर दिया। बढे हुए क्षेत्रफल में बाघ सहित अन्य वन्य जीवों क ा रहवास और आवास बढऩे से इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होती गई और यही वजह है कि 2018 के टाईगर ऐस्टीमेशन की गणना में बांधवगढ़ में सर्वाधिक तेजी से बाघो की संख्या बढऩे का गौरव हासिल हुआ। बांधवगढ़ मे गणना के मुताबिक 110 से 135 बाघ पाए गए है और बाघों की बढी हुई संख्या मप्र को टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
बाँधवंगढ टाइगर रिजर्व बाघ दर्शन पर्यटन के साथ साथ सदियों से धार्मिक आस्था का केंद्र बिंदु रहा है। ऐतिहासिक किले के समीप स्थित राम जानकी मंदिर में सालाना कृष्ण जन्माष्टमी को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मेले का उद्घाटन आज भी परंपरागत रूप से रीवा रियासत के वंसज करते हैं। इसके अलावा यहां कबीर गुफा और संत सेन की भी समाधि है । शिकारगाह से बाघों के सरंक्षण के केंद्र के रूप में उभरे बाँधवंगढ टाइगर रिजर्व में 2018 की गणना के नतीजों में 110 से 135 बाघों की गणना का आकलन हुआ है जो निश्चित रूप से बाघ सरंक्षण की दिशा में किए गए कारगर प्रयासों को साबित करता है और साथ ही रीवा रियासत के अंतिम महाराजा मार्तण्ड ङ्क्षसह के उस मंसूबे को भी पूरा करता है जिस शर्त पर उन्होंने बाँधवंगढ की जमीन सरकार को सौपीं थी।

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