नई दिल्ली। इंडियन सुपर लीग की टीम एफसी गोवा पर 11 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया जबकि इसके सह मालिकों को बैन कर दिया गया। आपको बता दें कि टूर्नामेंट की छवि खराब करने की एवज में श्रीनिवास डेम्पो पर 2 साल और दत्ताराज सलगांवकर पर 3 साल का बैन लगाया गया है। इस अवधि के दौरान वह स्टेडियम में भी दाखिल नहीं हो पाएंगे।
इंडियन सुपर लीग के रेग्यूलेटरी कमीशन ने 2015 आईएसएल फाइनल में हुए विवाद की सुनवाई पूरी करते हुए कड़ा फैसला लिया है। कमीशन ने एफसी गोवा पर 11 करोड़ रुपए का जुर्माना ठोक दिया है। 11 करोड़ रुपए के जुर्माने के साथ-साथ आयोग ने यह भी फैसला किया है कि एफसी गोवा की टीम अगले सीजन में -15 अंक के साथ शुरुआत करेगी। इसी के साथ कमीशन ने कहा कि टीम और टीम के मालिकों ने टूर्नामेंट की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
मुंबई में सुनवाई पूरी होने के बाद कमीशन ने यह निर्णय सुनाया। रिटायर्ड जस्टिस डी.ए. मेहता की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय आयोग ने सुनवाई में एफसी गोवा को आईएसएल के नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया। 20 दिसंबर को हुए विवाद के बाद कमीशन ने सभी पार्टियों को नोटिस दिया था। इसमें एफसी गोवा को नोटिस देकर पूछा गया था कि आप पर मैच के बाद पुरस्कार समारोह का बॉयकॉट करने के लिए एक्शन क्यों लिया जाए।
वीडियो में निर्दोष साबित हुए थे एलानो
इस विवाद के वीडियो फुटेज का रिव्यू करने के बाद साफ हो गया था कि एलानो ने किसी के साथ हाथापाई नहीं की थी और वे पूरी तरह निर्दोष थे। फुटेज में उल्टा एफसी गोवा के अधिकारी एलानो के साथ धक्का-मुक्की करते नजर रहे थे। यहां तक कि एक अधिकारी ने ब्राजील के लिए वर्ल्ड कप खेल चुके फुटबॉलर एलानो को थप्पड़ जड़ दिया था जब वह खुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे।
महासंघ पहले ही लगा चुका है 50 लाख का जुर्माना
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ की अनुशासनात्मक कमेटी एफसी गोवा पर इसके लिए 50 लाख रुपए का जुर्माना पहले ही लगा चुकी है। एफसी गोवा का कहना है कि एक ही गलती के लिए उसे दो बार सजा नहीं दी जा सकती।
क्यों हुआ था विवाद
चेन्नईयन एफसी ने पिछले साल 20 दिसंबर को हुए फाइनल में एफसी गोवा को 3-2 से हरा दिया था। फाइनल हारने के बाद दत्ताराज सालगांवकर ने आरोप लगाया था कि चेन्नईयन के एलानो ब्लमर ने उनके साथ हाथापाई की है। इतना ही नहीं दत्ताराज ने एफआईआर दर्ज कराई। एलानो को गिरफ्तार कर लिया गया और एक दिन बाद छोड़ा गया। इतना ही नहीं एफसी गोवा को 11 और 12 अप्रैल को अपना केस आयोग के सामने रखने को कहा गया था लेकिन वह आयोग के सामने उपस्थित नहीं हुए।
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