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जरा याद करो कुर्बानी : घड़ी बम से अंग्रेजों की रवानगी का वक्त कर दिया था तय

 क्रांतिकारी अजीमुल्ला ने कानपुर में धमाकों से डरा दिया था अंग्रेज हुकूमत को,  लंदन तक सुनी गई थी रेलवे स्टेशन विस्फोट और सत्तीचौरा घाट की कहानी
 

कानपुरAug 11, 2017 / 12:59 pm

आलोक पाण्डेय

Ajimullha Khan, 1857 Revolt

Ajimullha Khan

कानपुर . यूनाइटेड प्राविंस (अंग्रेजों के जमाने का उत्तर प्रदेश) के कानपुर शहर से गोरी हुकूमत को अच्छी कमाई होती थी। पहली वजह यह शहर दिल्ली-कोलकाता रेलमार्ग से जुड़ा था। दूजा शहर में उद्योग, नील का कारोबार तथा सैन्य अनुकूलता पर्याप्त थी। ऐसे में देश के सबसे बड़े प्रांत में अंग्रेजी हुकूमत की बुनियाद हिलाने के लिए आर्थिक मोर्चे पर करारी चोट करना जरूरी था। वर्ष 1857 के गदर में तय किया गया कि पूरब के मैनचेस्टर यानी अंग्रेजों की कमाई के शहर कानपुर में जबरदस्त प्रतिरोध किया जाएगा। रणनीति के मुताबिक सरकार इमारतों और स्टेशन को बम से उड़ाने पर रजामंदी बनी। इस काम को अंजाम देने के लिए टीम को जुटाया गया और मुखिया बने अजीमुल्ला। अजीमुल्ला ने रेलवे स्टेशन पर ऐसा धमाका किया, जिसकी गूंज लंदन तक पहुंची। इसी धमाके के बाद कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी बगावत हुई। सत्तीचौरा घाट, गोला घाट, बीबीघर जैसे तमाम ऐतिहासिक कहानियों को रचा गया।
बंबई में बनी योजना और कानपुर ने अंग्रेजों को चौंका दिया

अंग्रेजों को भारत से खदेडऩे के लिए सशस्त्र क्रांति का ऐलान हो चुका था। शहर के मशहूर डॉक्टर जवाहरलाल रोहतगी के साथ-साथ छैल बिहारी कंटक, प्यारेलाल अग्रवाल समेत कई बड़े नेता
बंबई पहुंच गए थे। वहां एक गुप्त ठिकाने पर अंग्रेजों की इमारतों पर धमाकों की रणनीति बनाई गई। कानपुर में पहला धमाका किया बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने। उन्होंने नयागंज डाकघर को बम से जमींदोज कर दिया, लेकिन तुंरत ही गिरफ्तार कर लिए गए। अब दूसरे धमाकों के लिए किसी अन्य की तलाश थी। रेलवे स्टेशन को उड़ाने के लिए जगदीश दुबे, बजरंग सिंह, बाबूराम अस्थाना का नाम तय किया गया, लेकिन नानासाहेब पेशवा के दीवान अजीमुल्ला ने इस काम को खुद अंजाम देने की ठानी और अकेले ही बम लेकर स्टेशन पहुंच गए।
कुली के वेश में बम लगाया, 40 फीट दूर जाकर गिरी छत

अजीमुल्ला कुली का वेश बनाकर स्टेशन में 56-56 पौंड के दो घड़ी बम (उस जमानें में टाइम बम को घड़ी बम कहते थे) लेकर प्लेटफार्म-एक पर पहुंचे। कालका मेल के आने का वक्त था। अजीमुल्ला ने मालूम किया कि अंग्रेज अफसरों का कोच कहा रुकेगा। इसके बाद उसी स्थान के करीब बम लगाकर अलग हट गए। जैसे ही कालका मेल प्लेटफार्म पर ठहरी, तेज धमाके के साथ बम फट गया। बताते हैं कि विस्फोट इतना जबरदस्त था कि स्टेशन की टीन की छत 40 फुट दूर जाकर गिरी। कालका मेल के कई वीआईपी कोच भी क्षतिग्रस्त हुए और तमाम अंग्रेज अफसर जख्मी हुए।
जुगाड़ से तैयार किया था बम, स्कूल से आया था रसायन

क्रांतिकारियों ने स्टेशन के करीब चंद्रिकादेवी चौराहा पर स्थित एक प्रेस के मालिक को अपने दस्ते में शामिल किया। इसके बाद चंद्रिकादेवी पार्क के पास ब्रम्हदत्त के मकान में किरायेदार घनश्याम चावला के कमरे में बम बनाए गए। बम के लिए पिकरिक एसिड चाहिए था। इस जरूरत को पूरा किया आनंद प्रकाश सनेजा ने, जोकि एक कालेज में रसायन प्रयोगशाला के इंचार्ज थे। चूल्हे पर एसिड तैयार करते समय धुआं मोहल्ले में फैला तो क्रांतिकारियों को आनन-फानन में वह घर छोडक़र सीधे बिठूर निकलना पड़ा था। बहरहाल, स्टेशन धमाकों के बाद अजीमुल्ला ने कानपुर में कई क्रांतिकारी घटनाओं का नेतृत्व किया। सत्तीचौरा घाट पर अंग्रेजों का कत्लेआम और प्रतिशोध की आग के चलते बीबीघर में अंग्रेज परिवारों का नरसंहार अजीमुल्ला को अमर बना गए।

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