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बसपा के पुराने नेता ही मायावती को नुकसान पहुंचाएंगे, इनसे निपटने का क्या है प्लान

1984 की बसपा और आज की बसपा में जमीन का अंतर है। कांशीराम ने जिस बसपा का गठन किया था वह मायावती के नेतृत्व में अलग रास्ते पर चल रही है। पार्टी के गठन के समय से जुड़े नेता अब बसपा से बाहर हैं। दर्जनभर से अधिक पुराने बसपाई विभिन्न दलों में नेतृत्व के पद पर हैं। यह बसपा को नुकसान पहुंचाएंगे।

लखनऊOct 19, 2021 / 03:16 pm

Mahendra Pratap

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Mayawati

लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 सभी प्रमुख दलों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। लेकिन, बहुजन समाज पार्टी के लिए यह चुनाव अब तक के चुनावों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही मुश्किलभरा होगा। यूपी के हर कोने में उसके अपने ही नेता ताल ठोकते नजर आएंगा। चाहे वह नसीमुद्दीन सिद्दीकी हों, स्वामी प्रसाद मौर्य हों या फिर आरएस कुशवाहा। हर राजनीतिक दल में बसपा के पुराने वफादार अब ने केवल जिम्मेदार पदों पर हैं। बल्कि अपनी-अपनी पार्टियों के रणनीतिकार भी हैं। ऐसे में बसपा की पुरानी चुनावी रणनीति से यह सब वाकिफ हैं। इसलिए बसपा को इस बार नए सिरे से चुनावी रणनीति बनानी होगी।
अधिकांश साथी छोड़ चुके हैं साथ
कांशीराम के समय के अधिकांश बसपा नेता अब बसपा से बाहर किए जा चुके हैं। हाल ही मायावती ने पार्टी के पूर्व विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर को बसपा से निकाला। इससे पहले पासी मतदाताओं में अच्छी पकड़ रखने वाले इंद्रजीत सरोज और आरके चौधरी के अलावा, पार्टी के बड़े नेता त्रिभुवन दत्त, अतिपिछड़ों में पैठ रखने वाले केके गौतम, मुजफ्फरनगर से पूर्व सांसद कादिर राणा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है।
अंतत: सुखदेव राजभर ने भी छोड़ दिया था साथ
2022 के विधानसभा चुनाव में यह सभी नेता प्रत्यक्ष रूप से बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। बसपा से निकाले गए इन नेताओं की अपनी जाति के मतदाताओं और क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। आजमगढ़ के दीदारगंज विधानसभा सीट से विधायक रहे और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दिवंगत नेता सुखदेव राजभर अपने बेटे कमलाकांत को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के हवाले कर गए हैं। मंगलवार को उनके निधन पर मायावती ने ट्वीट कर दुख जरूर जताया है। लेकिन पूर्वांचल में सुखदेव राजभर का अच्छा प्रभाव था अब इसका सीधा फायदा सपा को मिलेगा।
2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार
2007 में 207 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत से बसपा ने उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। इसके बाद से पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के साथ छोडऩे और बसपा से निकाले जाने के कारण बसपा का जनाधार खिसकता गया। 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने यूपी में 89 सीटें जीतीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का उत्तर प्रदेश में खाता भी नहीं खुल सका। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा के 19 विधायक ही विधानसभा पहुंच सके थे। फिर 2019 के लोकसभा के चुनाव में बसपा ने सपा से गठबंधन के साथ यूपी में अपने 10 सांसद जिताने में कामयाब रहीं।
14 अप्रेल 1984 को हुआ था बसपा का गठन
बहुजन समाज पार्टी का गठन 14 अप्रेल 1984 में कांशीराम ने किया था। तब बसपा के गठन का उद्देश्य अनुसूचित, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ों व अतिपिछड़ों को सामाजिक न्याय दिलाना था। पार्टी के गठन के बाद कांशीराम ने गांव-गांव जाकर सामाजिक न्याय की अलख जगाकर समाज के निचले लोगों को अपने साथ जोडऩे का काम किया। इसके साथ ही उन्होंने अपनी जातियों में अच्छी पकड़ रखने वाले नेताओं को भी अपने साथ जोड़ा। जिसमें दयाराम पाल, सुखदेव राजभर, लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, केके गौतम आदि नेता शामिल थे।

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