धीरेन्द्र विक्रमादित्य गोपालगोरखपुर. आखिरकार बच्चों के लिए काल बना अगस्त महीना आज बीत ही गया। जाते जाते इस महीने ने 394 से ज्यादा बच्चों को अपना ग्रास बना लिया। अभी 24 घंटे की रिपोर्ट आना बाकी है। यह बात दीगर है कि प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री के दावे के विपरीत इस साल का अगस्त पिछले साल के अगस्त से बड़ा कातिल साबित हुआ। पिछले साल अगस्त में 364 मौतें हुई थी।
बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में भर्ती बच्चों के लिए इस बार अगस्त का महीना बेहद जानलेवा साबित हुआ। अगस्त के इस महीने में अन्य महीनों से अधिक बच्चों की मौत हुई। मेडिकल कॉलेज के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो इस महीना के अंतिम दिन का आंकड़ा आना अभी बाकी है और 30 दिनों में 394 से अधिक बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं। इसमें सबसे अधिक मौतें नवजात शिशुओं की हुई है। इस महीने करीब 223 नवजात एनआईसीयू में दम तोड़ चुके हैं। जबकि शेष बच्चे इन्सेफेलाइटिस व अन्य वजहों से मौत के आगोश में चले गए। मरने वाले सबसे अधिक नवजात हैं जो अपने जीवन का एक पूरा महीना भी नहीं देख सके।
मेडिकल कॉलेज से मिली जानकारी के अनुसार इस महीने 1500 के करीब बच्चे एनआईसीयू और पीआईसीयू में भर्ती है थे। लेकिन इनमें से करीब चार सौ के आसपास फिर जीवित बाहर नहीं आ सके। इनमें से 223 नियोनेटल थे तो 171 बच्चे एक माह से ज्यादा की उम्र के थे। जबकि पिछले साल अगस्त में 174 बच्चों की मौत हुई जो इस साल से 49 कम है। पिछले साल अगस्त माह में 364 बच्चों की मौत मेडिकल कॉलेज में हुई थी इस बार अगस्त में यह आंकड़ा 400 के अंक को छू रहा।
अगर बीते आठ माह को देखे तो अगस्त महीने में इस बार मौतों का ग्राफ बेहद ऊपर पहुँच गया। बच्चों के लिए इस साल में फरवरी व मई महीना थोड़ा सुकून वाला था। इस महीने के भी मौतें हुई लेकिन अन्य महीने के मुकाबले थोड़ा कम। फरवरी में 180 मासूमों की यहां जान गई तो मई में 193 मासूम काल के आगोश में समा गए। नवजातों के लिए जुलाई इस बार सबसे अच्छा रहा। इस महीने के केवल 95 नवजातों की ही मौत हुई।
बहरहाल, बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रशासन अब मौतों के आंकड़े को साल व महीने में विभक्त कर तुलनात्मक रूप से यह बता रहा कि ये मौतें तो सामान्य बात है। अगर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री सिद्दार्थनाथ सिंह के शब्दों में कहे, ‘ अगस्त के महीने में बच्चे तो मरते ही हैं’।