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वाराणसी

देव दीपावली: 51 लीटर दूध से होगा मां गंगा का अभिषेक, घाट की 500 किलो फूल से होगी भव्य सजावट

महिला एंव परिवार कल्याण व पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी होगी मुख्य अतिथि, 23 नवम्बर को बजड़े पर बने भव्य मंच पर होगा सांस्कृतिक आयोजन

वाराणसीNov 21, 2018 / 06:13 pm

Devesh Singh

Gangotri Seva samiti

Gangotri Seva samiti

वाराणसी. गंगोत्री सेवा समिति के बैनर तले दशाश्वमेध घाट पर 23 नवम्बर को भव्य ढंग से देव दीपावली मनायी जायेगी। बुधवार को समिति के संस्थापक अध्यक्ष पं.किशोरी रमन दूबे ने मीडिया को बताया कि गाय के 51 लीटर दूध से पवित पावनी मां गंगा का जलाभिषेक किया जायेगा। घाट व बजड़े पर बने मंच की 500 किलो फूल से भव्य सजावट की जायेगी। नामचीन कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर समारोह को यादगार बना देंगे।
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पं किशोरी रमन दूबे ने बताया कि समारोह में मुख्य अतिथि महिला एंव परिवार कल्याण व पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी होगी। जबकि अध्यक्षता कैलाश मठ नासिक के स्वामी संविदानंद सरस्वती जी करेंगे। संचालन की जिम्मेदारी आकाशवाणी की मालिनी सक्सेना व राजेश शुक्ला को सौंपी गयी है। उन्होंने कहा कि 28 साल से लगातार दशाश्वमेध घाट पर देव दीपावली का आयोजन होता आया है। देव दीपावली के दिन मां गंगा की विधि विधान से पूजन किया जायेगा। इसके बाद गाय के 51 लीटर दूध से अभिषेक होगा। घाट की मढी पर 21 ब्राह्मणों द्वारा मां गंगा की महाआरती की जायेगी। पं किशोरी रमन दूबे ने कहा कि अष्टधातु की 108 किलो की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार करने के साथ ही 100 किलो विदेशी फूलों से भव्य सजावट की जायेगी। बजड़े पर बने विराट मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा। कर्नाटक राज्य की प्रसिद्ध गायिका सुश्री संगीता कट्टी कुलकर्णी के साथ बनारस के गायक विजय, संगीतकार बलराम मिश्र व उनके साथी कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मनोहारी प्रस्तुति करेंगे। इसी क्रम में केदार घाट की सीढ़ीयो पर तीन आरती होगी। देव दीपवाली के दिन पुलिस के शहीद जवानों की यादव में चल रहे आकाशदीप का भी समापन होगा। पत्रकार वार्ता में सर्वेश अग्रवाल, कन्हैया त्रिपाठी, शांतिलाल जैन आदि लोग उपस्थित थे।
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देवताओं पर जब काशी से प्रवेश हटा तो मनायी गयी देव दीपावली
देवी दीपावली को लेकर दो पौराणिक व धार्मिक मान्यताएं है। काशी के प्रथम शासक दिवोदास ने अपने राज्य बनारस में देवी व देवताओं का प्रवेश बंद कर दिया था। महादेव की नगरी काशी में देवता छिप कर कार्तिक मास पर पंचगंगा घाट पर मां गंगा का पवित्र स्थान करने आते थे बाद में जब राजा ने देवताओं पर से प्रतिबंध से हटाया तो देवताओं ने भगवान शिव की अराधना कर देव दीपावली मनायी थी इसके बाद से ही देव दीपावली मनाने की परम्परा आरंभ हुई। दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार त्रिपुर नामक दैत्य पर विजय के पश्चात देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति काॢतकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की थी और गंगा घाट को दीपमलाओं से सजा कर विजय दिवस मनाया था जिसके बाद से ही देव दीपावली मनायी जा रही है।
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