बता दें कि देश के सबसे बडे विश्वविद्यालय का बजट भी देश की किसी भी यूनिवर्सिटी से कहीं ज्यादा है। विश्वविद्यालय के करीब 50 हजार शिक्षकों व कर्मचारियों के वेतन, स्टैबलिशमेंट, सुरक्षा आदि को मिला कर इसे साल भर में मिलते हैं 1200 करोड़ रुपये। इसी में से विश्वविद्यालय 14 करोड़ रुपये सालाना प्राक्टोरियल बोर्ड पर खर्च करता है। लेकिन छात्राओं की सुरक्षा के लिए जब सीसीटीवी कैमरा लगाने की बात आई तो वह काम जिला प्रशासन को सौंप दिया गया। बता दें कि विश्वविद्यालय की छात्राएं लगातार मांग कर रही थीं कि गर्ल्स हॉस्टल व परिसर के प्रमुख मार्गों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं, प्रकाश की समुचित व्यवस्था हो और गर्ल्स हॉस्टल व प्रमुख मार्गों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की जाए। गत 21 सितंबर की घटना के बाद धरने पर बैठी छात्राओं ने इन मांगों को पुरजोर तरीके से उठाया। उसके बाद इन सभी मुद्दों पर जिला प्रशासन और विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकारियों के साथ वार्ता हुई। वार्ता के बाद ही कुलपति की सहमति से कमिश्नर ने सोमवार की रात वीडीए के सचिव को विश्वविद्याय परिसर में सीसीटीवी लगाने का निर्देश दिया।
अब सवाल यह उठने लगा है कि क्या विश्वविद्यालय अपने खर्च पर लड़कियों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे तक नहं लगा सकता। इस मामले में विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव आदि ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि विश्वविद्यालय में अंधेरगर्दी मची है। छात्राओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरा लगाने के लिए पैसा नहीं है। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि जब वह 1086 में विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहे तो छात्रसंघ और डेलीगेसी के नाम पर एक-एक रुपये लिए जाते थे। अब तो न छात्र संघ है न डेलीगेसी है बावजूद इसके प्रति छात्र 10-10 रुपये लिए जा रहे हैं। वो पैसा कहां जा रहा है। किस काम में खर्च हो रहा है। इस विश्वविद्यालय को यूजीसी से सर्वाधिक फंड रिलीज होता है वो सब पैसा कहा जा रहा है। यह तो हास्यास्पद है कि सीसीटीवी कैमरा लगाने के लिए जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश शासन को आगे आना पड़े। इससे शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता। श्रीवास्तव ने परोक्ष रूप से विश्वविद्यालय प्रशासन पर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाया।