मानव संसाधन विकास मंत्रालय हर साल अपनी एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ ) के जरिए देश के तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों एजुकेशनल की गुणवत्ता को रैंक देता है। इसके लिए एनआईआरएफ अलग-अलग कैटेगरी और सम्मलित रूप से पांच पैरामीटर्स (टीचिंग, लर्निग, रिसोर्सेज, टीएलआर, रिसर्च एंड प्रोफेशनल प्रैक्टिस आरपीसी, ग्रेजुएशन आउटकम जीओ, आउटरीच एंड इन्क्लूसिविटी ओआई व परसेप्शन) पर इंस्टीट्यूट्स की रैकिंग करता है और उन्हें घोषित करता है।
2016 में इसी एजेंसी ने बीएचयू को सातवां स्थान दिया था, 2017 में बीएचयू ने अपनी रैंक में सुधार किया और तीसरे पायदान पर पहुंच गया। फिर 2018 और अब 2019 में भी में इसे बरकरार रखा है। पहला स्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंलूरू व दूसरा स्थान जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली को मिला है।
बता दें कि बीएचयू ने जो सफलता अर्जित की है वह इतना आसान भी नहीं है। कारण मानव संसाधन विकास मंत्रालय हर साल अपनी एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ ) के जरिए देश के तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों एजुकेशनल की गुणवत्ता को रैंक देता है उसमें शैक्षणिक गतिविधि सबसे ऊपर है। वहीं बीएचयू की स्थिति यह है कि यहां पढ़ने वालों की तादाद है 32 हजार तो शिक्षक महज 1900 हैं। यानी देखा जाए तो हर 17 छात्र पर एक टीचर। यह कहीं से शिक्षा मानकों को पूरा नहीं करता। तमाम तरह की दिक्कते हैं। एक शिक्षक को स्नातक की कक्षाएं भी पढ़ानी होती है, परास्नातक की भी फिर उसे शोध भी कराना होता है। ऐसा शोध जो स्तरीय हो। पेटेंट कराया जा सके, क्योंकि मानन संसाधन मंत्रालय केएनआईआरएफ के सर्वे में शोध भी है वह भी गुणवत्तापूर्ण। इस लिहाज से बीएचयू की इस उपलब्धि को उससे ऊपर के दो अन्य शिक्षण संस्थाओं से कमतर करके कतई नहीं आंका जा सकता।
एनआईआरएफ सर्वे में आईआईटी बीएचयू ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। देश के टॉप 100 इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स में आईआईटी बीएचयू को 11 स्थान मिला है। आईआईटी बीएचयू ने इस वर्ष अपनी रैकिंग में 08 पायदान का सुधार किया है। पिछले साल वह 19 वें रैंक पर था।