बता दें कि तीन दिन पहले हुए बीएचयू के दीक्षांत समारोह के दौरान इतिहास के एक परास्नातक छात्र ने मंच पर चढ कर डिग्री लेने से इंकार कर दिया था। इसके अलावा संकायों में एनआरसी सीएए का जमकर विरोध हुआ था। इस कानून का विरोध करने वाले बीएचयू और आईआईटी के गिरफ्तार छात्रों की रिहाई की मांग भी पुरजोर तरीके से उठाई गई थी। उसके एक दिन बाद मालवीय जयंता पर प्रोफेसरों ने सीएए व एनआरसी के विरोध में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया।
बीएचयू के प्रोफेसरों का विरोध सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। विरोध जताने वालों का कहना है कि यह कानून पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम की भावना के खिलाफ है। सरकार को इस कानून पर पुनर्विचार करना चाहिए।
बीएचयू के समाजविज्ञान संकाय के प्रमुख व राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ आरपी पाठक का इस मुद्दे पर कहना है कि यह कानून पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम की भावना और बहुलतावादी लोकतंत्र के विचारों के विरुद्ध है। यह महात्मा गांधी और रवींद्र नाथ टैगोर की भूमि में कतई स्वीकार्य नहीं। कहा कि यह स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक आधार पर समाज को बांटने का प्रयास है। इस कानून को लाने का मकसद यह कि लोगों का दिमाग मूल मद्दों से भटक जाए। उन्होंने कहा कि यह भारतीय दर्शन की वकालत के रूप में भारतीय समावेशी परंपरा के भी विरुद्ध है।
अर्थ शास्त्र विभाग के प्रो एनके मिश्र ने आरपी पाठक के विरोध का समर्थन किया। कहा कि वह एनआरसी की मुखालफत करते हैं। इसी तरह अन्य प्रोफसरों ने भी इस कानून के बाबत सरकार के पुनर्विचार की मांग की।
वहीं प्रोफेसरों ने इस कानून के विरोध को लेकर किसी तरह की हिंसा की भी जमकर मुखालफत की। कहा कि विरोध प्रदर्शन पूरी तरह से अहिंसक होना चाहिए। प्रोफेसरों ने जामिया मीलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई पुलिस कार्रवाई का भी कड़ा विरोध किया।
इस विरोध में बीएचयू के सभी संबद्ध क़ॉलेजों के शिक्षकों के अलावा आईआईटी बीएचयू के भी प्रोफेसर शामिल हैं। विरोध करने वालों में नरेंद्र कुमार मिश्रा, मनोज कुमार, डॉ प्रमोद कुमार बागले, सरफराज आलम, पी शुक्ला, आरके मंडल, एके मुखर्जी, डॉ पीके बागले, तबीर खान, मुशर्रफ अली, डीके ओझा, अर्पिता चटर्जी, राज कुमार, अर्चना कुमार, आनंद मिश्रा, अजीत कुमार पांडेय, एके पांडेय आदि प्रमुख हैं।