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वाराणसी

BHU के वैज्ञानिकों के इस प्रयोग से लाखों की बच पाएगी जिंदगी, जानें क्या है ये शोध

BHU के वैज्ञानिकों पहले भी कर चुके हैं ऐसा कारनामअब इस प्रयोग से देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों को होगा फायदा
 

वाराणसीSep 27, 2019 / 02:00 pm

Ajay Chaturvedi

BHU

BHU

वाराणसी. जीवन रक्षक दवाओं के इजाद में बीएचयू का कोई जोड़ नहीं है। यहां के वैज्ञानिकों ने कई ऐसे शोध किए हैं जो मानव कल्याण के लिए मुफीद हैं। एक से एक भयानक, जानलेवा बीमारियों में कारगर हैं महामना की बगिया के वैज्ञानियों के शोध कार्य। ऐसे में एक बार फिर से यहां के वैज्ञानिकों ने ऐसा तरकीब निकाली है जिससे देश ही नहीं दुनिया के लाखों-करोड़ों लोगों को जीवनदान मिल पाएगा।
बीएचयू के वनस्पति विभाग के वैज्ञानिकों ने एक पौधे को इस तरह से प्रयोगशाला में विकसित किया है जिससे लाखों-करोड़ों लोग में एलर्जीरोधी तत्व विकसित किया जा सकता है। यह इतनी कारगर एंटीबायोटिक है कि इससे खतरनाक से खतरनाक बैक्टीरिया, वायरस के संक्रमण पर काबू पाया जा सकता है।
दअसल बीएचयू के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे पौधे को भारत वो भी उत्तर भारत जैसे गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में विकसित कर लिया है जो अब तक केवल ठंडे इलाकों में ही पनपता रहा। खास तौर पर चीन में। बताया जा रहा है कि इस पौधे में मलेरिया जैसी घातक बीमारी को नियंत्रित करने की क्षमता है। अब वनस्पति विभाग के वैज्ञानिको के चलते यह पौधा गर्म जलवायु वाले इलाकों में भी पनप सकेगा। यह पौधा है “आर्टिमिसिया अनुआ”।
वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने इस पौधे का नेचर ही बदल दिया है। इसके लिए इसके टिशु कल्चर पर शोध किया और ऐसी तकनीक विकसित की कि पौधे का नेचर ही चेंज हो गया। बताया जा रहा है कि इस पौधे की पत्तियां मलेरिया के लिए राम बांण है।
बीएचयू का वैज्ञानिक
यह प्रयोग वनस्पति विभाग की प्रो. शशि पांडेय करा रही हैं। उन्होने आर्टिमिसिया अनुआ को सफलतापूर्वक प्रयोगशाला में उगाया। पौधे में आर्टिमिसिया रसायन समुचित मात्रा में मौजूद रहा। इसे पराबैगनी किरणों से उपचारित किया गया तो रसायन की मात्रा दो गुनी हो गई। इसे क्षारीय भूमि में भी उगने लायक बना लिया गया है। इसकी खेती बंजर जमीन पर भी की जा सकेगी। इस रिसर्च में प्रो पांडेय के साथ उनकी शोध छात्रा डॉ अंजा कुमारी, डॉ नेहा पांडेय, नीरज गोस्वामी, निधि राय व मीना काम कर रही हैं।
इस पौधे की पत्तियों व फूल से मस्तिष्क ज्वर व मलेरिया की दवा बनाई जाती है। चूहों और बंदरों को इसकी पत्तियां खिलाकर मलेरिया को ठीक किया गया। इसकी खोज चीनी वैज्ञानिक यूयूतू ने की थी। वैश्विक स्तर पर चीन व वियतनाम आर्टिमिसिया का 70 फीसदी उत्पादन करते हैं। मलेरिया केअतिरिक्त इसका उपयोग जीवाणुओं तथा कवकों के अलावा कैंसर तथा अस्थमा के उपचार में भी प्रयोग किया जाता है।
“आर्टिमिसिया अनुआ की पत्तियों में मलेरियारोधी तत्व मौजूद हैं। इससे खाने की गोली व इंजेक्शन तैयार किए जाते हैं। इसका उत्पादन कम होने से मांग पूरी नहीं हो पा रही है। पौधे की उत्पादन क्षमता बढ़ा कर कमी पूरी की जा सकती है।”- प्रो. शशि पांडेय

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