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वाराणसी

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से राज बब्बर की छुट्टी तय, इनमें से किसी एक दिग्गज नेता को मिल सकती है कमान

16 मार्च से होना है कांग्रेस का महाधिवेशन। लोकसभा, विधानसभा के बाद निकाय चुनाव हारने के बाद पार्टी नेतृत्व बदलाव के मूड में।

वाराणसीMar 04, 2018 / 01:49 pm

Ajay Chaturvedi

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. यूपी में लगातार 28 साल से सियासी हाशिये पर चल रही कांग्रेस को लग रहा है कि गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश में पार्टी तेवर में आ सकती है तो यूपी में क्यों नहीं। ऐसे में यूपी कांग्रेस में बड़े बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। 16 मार्च से होने वाले महाधिवेशन के दौरान कुछ चौंकाने वाले परिणाम भी आने के कयास लगाए जा रहे हैं। खास तौर पर यूपी नेतृत्व को लेकर। पार्टी सूत्रों की मानें तो राज बब्बर का प्रदेश अध्यक्ष पद से हटना तय है। ज्यादा संभव है कि प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद को भी नई जिम्मेदारी दे कर उनसे उत्तर प्रदेश प्रभारी का पद ले लिया जाए। दरअसल हाईकमान संगठन की मजबूती पर ज्यादा ध्यान देना चाहता है। कारण साफ है कि जब तक संगठन मजबूत नहीं होगा पार्टी किसी सूरत में चुनावी फतह हासिल नहीं कर सकती। यह फीडबैक राहुल एंड कंपनी को मिल चुका है।
बता दें कि लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी ने यूपी कांग्रेस अध्यक्ष रहे डॉ निर्मल खत्री को हटा कर विधानसभा चुनाव के पहले बड़ी उम्मीद से यह दायित्व राज बब्बर को सौंपा गया था। हालांकि सीएम के रूप में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का चेहरा सामने लाया गया। पार्टी ने 27 साल यूपी बेहाल का नारा दिया, तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने समूचे प्रदेश के गांवों का दौरा किया। सफल खाट सभाएं हुईं। लेकिन चुनाव आते-आते राहुल और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाथ मिला लिया। नारा बदल गया, नया नारा आया, यूपी को ये साथ पसंद है। लेकिन यूपी ने उसे सिरे से नकार दिया। हालांकि तब उस पराजय का ठीकरा चुनावी राजनीति के चाणक्य माने जा रहे प्रशांत किशोर के सिर फूटा। उनका बोरिया बिस्तर उठ गया। तभी राज बब्बर ने नैतिकता के नाते इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन हाईकमान ने तब उसे नकार दिया था। इस बीच संगठनात्मक चुनाव शुरू हुए तब फिर से नेतृत्व परिवर्तन की आवाज बुलंद होने लगी। लेकिन उस संगठनात्मक चुनाव में सिर्फ शीर्ष स्तर पर उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अध्यक्ष की कुर्सी मिल गई। लेकिन यूपी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग दबी जुबान जारी रही। केवल प्रदेश ही नहीं बल्कि जिला और महानगर स्तर पर भी बदलाव की मांग होती रही। इसी बीच नगर निकाय चुनाव आ गया जिसके चलते सब कुछ ठंडा पड़ गया। लेकिन निकाय चुनाव में भी अपेक्षित सफलता न मिलने पर पार्टी हाईकमान के पेशानी पर बल पड़े हैं। टीम राहुल ने जो सर्वे कराया है उसके अनुसार संगठनात्मक कमजोरी से पार्टी को बार-बार हार का मुख देखना पड़ रहा है। ऐसे में पार्टी ने अब संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करने का बीड़ा उठाने का संकल्प लिया है।
संगठनात्मक मजबूती के लिहाज से ही कुशल राजनीतिक प्रबंधक रहे बसपा के कद्धावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी में शामिल किया गया है। पार्टी सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली में 16 मार्च से शुरू होने वाले कांग्रेस के तीन दिवसीय सत्र के समापन के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर को उनके पद से हटाकर नई जिम्मेदारी दे सकते हैं। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से बगावत कर कांग्रेस का दामन थामने वाले नसीमुद्दीन सिद्दिकी को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंपी जा सकती है। इतना ही नहीं अंदर खाने चल रही कवायद से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि लंबे समय से भतेजी से अखिलेश यादव से खफा चल रहे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ जमीनी नेता शिवपाल सिंह यादव सत्र के दौरान कांग्रेस से जुड सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो वह भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के मजबूत दावेदार होंगे। वजह साफ है ये दोनों ही नेताओं की जमीनी स्तर पर पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। संगठन कैसे चले इसका प्रबंधन भी इन्हें बखूबी आता है। वैसे पार्टी के अंदर से जतिन प्रसाद, डॉ राजेश मिश्र और आरपीएन सिंह के नाम भी तेजी से चल रहे हैं।
पार्टी के दिग्गज नेता गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्र में 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव को लेकर पूरी तरह से नाउम्मीद हो चुके हैं। पार्टी नेताओं का मानना है कि इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत बचा ले तो बड़ी बात होगी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि सपा और बसपा के बड़े जनाधार वाले दलों के बड़े नेताओ की मदद से पार्टी अपनी हालत मजबूती कर सकती है। उन्होंने बताया कि पार्टी महासचिव गुलाम नवी आजाद को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने और राजबब्बर को प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कांग्रेस की हालत में सुधार नही ला सकी। वर्ष 2०14 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी 22 सीटों से खिसक कर मात्र दो में सिमट गई। केवल तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही अपनी सीट बचा पाए। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की हालत नहीं सुधरी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सूबे में पिछले साल हुए नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से हाईकमान चिंतित है। उसका मानना है कि बब्बर की टीम इस चुनाव में उचित प्रत्याशियों का चयन करने में पूरी तरह फ्लाप साबित हुई।
हालांकि बनारस में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। गंगापुर नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर पार्टी ने कब्जा किया। लेकिन रामनगर पालिका परिषद अध्यक्ष का टिकट काटा जाना, उन्हें पार्टी से निकाला जाना फिर उनका निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ना और लगातार तीसरी जीत हासिल करना भी हाईकमान की दृष्टि में खटका। तभी राष्ट्रीय महासिचव व प्रदेश प्रभारी व प्रदेश अध्यक्ष को रामनगर पालिका अध्यक्ष को पार्टी में वापस लेना पड़ा। इधर बनारस की मेयर प्रत्याशी का अप्रत्याशित रूप से एक लाख 13 हजार मत हासिल करना, उनका राजनीतिक कद बढ़ा गया। इस बात की मुक्त कंठ तारीफ खुद प्रदेश प्रभारी ने बनार में आयोजित मंडलयी कार्यकर्ता सम्मेलन में भी की और उससे पहले दिल्ली में मीडिया के समक्ष भी की। बात साफ है कि पार्टी के शीर्ष स्तर तक यह संदेश पहुंच गया कि नेतृत्व चाहे प्रदेश स्तर का रहा या जिला व महानगर स्तर का, निकाय चुनाव में प्रत्याशी चयन में चूक हुई जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा। साथ ही संगठनात्मक कमजोरी की जानकारी भी हाईकमान तक पहुंच चुकी है। बनारस के कांग्रेसियों का मानना है कि महानगर की वरिष्ठ काग्रेस नेत्री की बगावत यहां भी जाया नहीं होगी। आहत होकर पार्टी नेतृत्व करने पर मजबूर है।
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