वाराणसी

बीजेपी के दांव में फंसे सीएम योगी आदित्यनाथ, इस सीट के प्रत्याशी ने बदला सारा समीकरण

निषाद पार्टी को नहीं मिली जीती हुई सीट, जानिए क्या है कहानी

वाराणसीApr 16, 2019 / 12:04 pm

Devesh Singh

CM Yogi Adityanath

वाराणसी. बीजेपी के दांव में सीएम योगी आदित्यनाथ फंस सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार को प्रत्याशियों के लिए जो सूची जारी की थी उसमे सबसे चौकाने वाला नाम गोरखपुर संसदीय सीट को लेकर था। बीजेपी ने इस सीट से भोजपुर स्टार रवि किशन को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर वर्तमान एमपी निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को संत कबीर नगर सीट का टिकट दिया है। बीजेपी ने गोरखपुर सीट से ब्राह्मण प्रत्याशी उतार कर सीएम योगी आदित्यनाथ की मठ राजनीति के लिए खतरे की घंटी बजायी है।
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गोरखपुर संसदीय सीट 1989 से गोरक्षापीठ के कब्जे में थी। वर्ष 2018में इस सीट पर हुए उपचुनाव में पहली बार यह सीट मंदिर से निकल कर दूसरे दल के पास गयी थी। अखिलेश यादव, मायावती के साथ निषाद पार्टी के गठबंधन ने इस सीट पर बीजेपी का वर्षों पुराना किला ध्वस्त कर दिया था। सपा के सिंबल पर चुनाव लड़े निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद ने इस सीट पर जीत दर्ज कर इतिहास रचा था। माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव 2019 में भी निषाद पार्टी सपा-बसपा गठबंधन के साथ रहेगी। लेकिन अचानक बीजेपी ने दांव खेला और निषाद पार्टी को अपने साथ कर लिया। उस समय माना जा रहा था कि निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को ही इस सीट से टिकट मिलेगा। बीजेपी की सूची ने जारी कर सभी अटकलो पर विराम लगाते हुए भोजपुरी स्टार व ब्राह्मण चेहरा रवि किशन को प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद से माना रहा है कि बीजेपी के दांव में सीएम योगी आदित्यनाथ फंस सकते हैं।
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जानिए कैसे फंस सकते हैं सीएम योगी आदित्यनाथ
गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव में जब बीजेपी को हार मिली थी तो उस समय सीएम योगी आदित्यनाथ ने अति आत्मविश्वास के चलते हार का कारण बताया था। लेकिन गोरखपुर में चर्चा थी कि बीजेपी ने उपचुनाव में ब्राह्मण प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ला को टिकट दिया था जिसके बाद से सीएम योगी आदित्यनाथ का क्षत्रिय खेमा चुनाव को लेकर सक्रिय नहीं हुआ। इसके चलते बीजेपी को अपने गढ़ में चुनावी हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी ने इस बार फिर से ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेला है। सूत्रों की माने तो सीएम योगी आदित्यनाथ की सहमति से ही भोजपुरी स्टार को प्रत्याशी बनाया गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि मंदिर से जुड़ा क्षत्रिय खेमा इस बार भी सक्रिय होता है या फिर उपचुनाव के तरह ही बीजेपी प्रत्याशी को लेकर क्षत्रिय खेमा रहस्मय चुप्पी साध लेता है।
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गोरखपुर संसदीय सीट पर वर्षो पुरानी है ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्चस्व की लड़ाई
गोरखपुर सीट पर ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्चस्व की लड़ाई बहुत पुरानी है। इस लड़ाई का असर पूर्वांचल तक दिखायी पड़ता है। क्षत्रियों का जुड़ाव गोरक्षा पीठ (मंदिर) से रहता है जबकि ब्राह्मण हमेशा हाता (हरिशंकर तिवारी का आवास) के साथ रहता है। पहले यह लड़ाई हरिशंकर तिवारी व माफिया वीरेन्द्र प्रताप शाही के बीच रहती थी। पहले मंदिर इस लड़ाई में सीधे कभी शामिल नहीं होता था लेकिन मंदिर व हरिशंकर तिवारी का आशीर्वाद लेकर ही कोई प्रत्याशी चुनाव में उतरता था। मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ ने 1967 से 70 व 1970 से 71 तक इस सीट से संसदीय चुनाव जीता था इसके बाद मंदिर के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ ने 1989 पर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था। गोरखपुर संसदीय सीट 1989 से 98 तक चुनाव जीता था इसके बाद मंदिर के नये महंत योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से 1998 से 2017 तक सांसद बन मंदिर का कब्जा बनाये रखा। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के प्रदेश का सीएम बन जाने के बाद ही यह सीट मंदिर का कब्जा नहीं रह गया। ऐसे में बीजेपी ने एक बार फिर ब्राह्मण प्रत्याशी उतार कर ऐसा दांव खेला है, जिसमे सीएम योगी आदित्यनाथ फंस सकते हैं।
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