प्रदर्शनकारियों का कहना है कि फिल्म उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में पिछड़ी जाति की दो बालिकाओं के साथ हुए बलात्कार, उसमें नामजद यादव समुदाय के अभियुक्त और उसके उपरांत हत्या की सत्य घटना पर आधारित है। सामाजिक विक्षोभ और विद्वेष पैदा करने वाले बात यह है कि इसमें जाति विशेष यानी ब्राम्हण को बलात्कारी, हत्यारा दिखाया गया है। समाज ने कहा कि यह कदापि स्वीकार नहीं है।
पहली बात तो यह है कि बलात्कारी की कोई जाति नहीं होती। बलात्कारी, बलात्कारी और अपराधी होते हैं। उसे किसी जाति से जोड़ना उचित नहीं है। दूसरी बात यह कि बदायूं की घटना में जिन व्यक्तियों पर बलात्कार और हत्या का आरोप लगा था वह ब्राम्हण नहीं थे। लेकिन फिल्म में उन्हें न सिर्फ ब्राह्मण बताया जा रहा है, बल्कि महंत के बेटे के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि यदि निर्माता-निर्देशक यदि वह फीचर फिल्म बना रहे हैं तो मौलिक तथ्यों को तोड़- मरोड़कर उन्हें प्रस्तुत करने का कोई अधिकार नहीं है। निरपराध वर्ग के लोगों पर दोषारोपण और समाज तथा देश में इनकी छवि खराब की जा रही है। इससे सामाजिक समरसता भंग होने की आशंका है। कहा कि हम सभी मिलकर देश से जाति व्यवस्था का समूल विनाश कराना चाहते हैं, जाति विभाजन को खत्म करना चाहते हैं, तो इस तरह की फिल्मों का जातीय चित्रण सर्वथा अनुचित है। निर्माता और निर्देशकों के इस कृत्य के कारण संपूर्ण समाज में क्रोध और विक्षोभ है जो समाज में अस्थिरता पैदा कर सकती है।