एसआईटी ने की कार्रवाई यूपी के विशेष अनुसंधान दल (एसआईटी) ने विश्वविद्यालय के फर्जी डिग्री मामले में 18 अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है। हालांकि इसमें से कई तो अब तक सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इसमें प्रोफेसर से लेकर तत्कालीन कुलसचिव व परीक्षा नियंत्रक तक शामिल हैं।
शासन की मंजूरी के बाद लिखा गया मुकदमा जानकारी के मुताबिक एसआईटी की जांच पूरी होने के बाद शासन की हरी झंडी मिलने के बाद मुकदमा दर्ज किया गया है। जांच में पता चला है कि विश्वविद्यालय से फर्जी डिग्री हासिल कर लोगों ने सूबे के विभिन्न जिलों के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बतौर सहायक अध्यापक की नौकरी हासिल कर ली थी। ऐसे 1100 से ज्यादा मामले में प्रकाश में आए हैं।
एसआईटी ने खंगाला दस साल का रिकार्ड सूत्रों के मुताबिक एसआईटी ने दस साल यानी 2004 से 2014 तक के फर्जीवाड़े के रिकार्ड खंगालने के बाद ये कार्रवाई की है। इस दौरान इन दस सालों में प्रदेश के विभिन्न प्राइमरी स्कूलों में कार्यरत सहायक अध्यापकों के प्रमाण पत्रो व डिग्री के सत्यापन किया गया। खास तौर पर ऐसे सहायक अध्यापक जिन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के शैक्षणिक प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी पाई थी।
डिग्री जारी करने की प्रक्रिया पर ही सवाल
एसआईटी ने जांच के दौरान पाया कि विश्वविद्यालय स्तर से जारी डिग्री और प्रमाण पत्र की पूरी प्रक्रिया ही दोषपूर्ण रही। जांच में कुलसचिव, उप कुलसचिव, सहायक कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात अफसरों तथा कतिपय प्रोफेसरों व परीक्षा विभाग में कार्यरत कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई।
65 जिलों की एक हजार से ज्याद डिग्री मिली थीं फर्जी बताया जा रहा है कि एसआईटी ने 18 नवंबर 2020 को ही जांच पूरी कर रिपोर्ट फाइल कर दी थी। इसमें सूबे के 65 जिलों में छह हजार से अधिक डिग्री की जांच की गई जिसमें से एक हजार 86 डिग्री फर्जी पाई गई। उसके बाद 99 पेज की रिपोर्ट में फर्जी डिग्री वाले 10 संदिग्ध आरोपियों के विश्वविद्यालय में ही कार्यरत होने का मामला भी सामने आया जिसकी सूचना दे दी गई।