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वाराणसी

आंदोलन से उपजी पार्टी कांग्रेस को आंदोलन से परहेज क्यो!

-बनारस में पिछले दो दशक से नहीं हुआ कोई बड़ा आंदोलन-2004 में अंतिम आंदोलन, बिजली कटौती और कानून व्यवस्था के मुद्दे पर-अब प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कांग्रेस की नई टीम को दिए हैं आंदोलन के टिप्स- निगाहें नई कांग्रेस कमेटी पर

वाराणसीJan 14, 2020 / 01:34 pm

Ajay Chaturvedi

Congress

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डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. नेता कोई हो, केंद्रीय, प्रादेशिक या जिला व महानगर का, सभी दुहाई देते हैं कि कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। कांग्रेस आंदोलन से उपजी पार्टी है। ऐसे में आज का यूथ ये जानना चाहता है कि अगर कांग्रेस का जन्म आंदोलन से हुआ तो अब क्या हो गया? क्या वो इतिहास के पन्नों में दब कर रह गया? आज का यूथ जिसकी उम्र 20-25 साल है उसने कांग्रेस को किसी मुद्दे पर सड़क पर उतरते या जेल जाते तो नहीं देखा। वो यूथ छिटपुट धरना-प्रदर्शन की बात नहीं कर रहा, वो अपने भविष्य की बात कर रहा है, अच्छी तालीम, सस्ती तालीम, लाइब्रेरी की सुविधा, दो वक्त का भोजन, बेहतर स्वास्थ्य, महंगाई, कानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा पर बड़ी लड़ाई लड़ते देखना चाहता है। मुद्दा सिर्फ नागरिकता कानून का नहीं है, अगर है तो वह भी ये जानना चाहता है कि यदि सत्ता पक्ष इसे जायज ठहरा रहा और आप इसे असंवैधानिक बता रहे हैं तो आपके पास क्या तर्क है। सामने आएं और सच बताएं।
ऐसे में पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का बनारस आना बड़ा मायने रखता है। तब तो और भी ज्यादा जब लल्लू खुद मीडिया को बताते हैं कि वह नवनियुक्त जिला व महानगर कांग्रेस के पदाधिकारियों संग बैठक कर ज्वलंत मुद्दों मसलन नागरिकता कानून, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की गिरती हालत, महिला सुरक्षा जैसे मसलों पर पार्टी को सड़क पर उतारने, आंदोलन और संवाद के जलिए लोगों को कांग्रेस से जोड़ने का काम किया जाएगा। इसी सोच के साथ वह वाराणसी आए थे, उन्होंने नवनियुक्त पदाधिकारियों संग बैठक भी की। संभवतः इस बैठक में कुछ रणनीति तय हुई, जो आने वाले दिनों में दिखे। नई टीम से उम्मीद इसलिए भी है कि इस बार युवाओं और ऐसे युवा जो जुझारू भी हैं के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
लेकिन हकीकत है कि वर्ष 2000-01 के बाद से इस जिले में आंदोलनों की पार्टी कांग्रेस ने कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया। वह 2000-01 में संवासिनी कांड के मुद्दे पर यूथ कांग्रेस ने एक सुनियोजित आंदोलन किया था, तब जिला यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे डॉ दयाशंकर मिश्र ‘दयालू’ और महानगर की कमान रही अनिल श्रीवास्तव ‘अन्नू’ के हाथ। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सतीश चौबे और महानगर अध्यक्ष विजय शंकर मेहता। तब इस आंदोलन में 21 अगस्त 2000 को यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणदीप सिंह सुरजेवाला भी बनारस आए थे, कचहरी पर कांग्रेस की बडी सभा हुई जिसमें लाठीचार्ज हुआ। सुरजेवाला समेत कई कांग्रेसी घायल हुए, कई कांग्रेस कार्यकर्ता जेल भी गए। लेकिन उसके बाद से कांग्रेस शांत हो गई।
इसके बाद 2004 में प्रवीण सिंह बबलू के नेतृत्व में कांग्रेस ने सिगरा स्थित बिजली विभाग के दफ्तर पर बड़ा आंदोलन किया था, अघोषित बिजली कटौती के नाम पर। लोग गिरफ्तार भी हुए और पुलिस लाइन तक ले जाए गए। जेल भी गए।
और पीछे जाएं तो चंद्रमोहन पांडेय के नेतृत्व में 1993 से 1996-96 के बीच भी कांग्रेस ने कानून व्यवस्था के नाम पर एक साथ जिले भर के थानों पर एक साथ प्रदर्शन किया था। नगरीय सुविधाओँ के लिए नगर निगम और विकास प्राधिकरण के जोनल दफ्तरों पर एक साथ एक ही समय में प्रदर्शऩ भी 19वीं सदी में ही हुए।
पिछले 20 सालों में बनारस कांग्रेस के ये बड़े आंदोलन थे। आज के यूथ को पांच साल पहले का आंदोलन जरूर याद है जब पूरा शहर सड़क पर उतर आया था। गोदौलिया पर आगजनी और लाठीचार्ज हुआ। इसमें वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय राय की गिरफ्तारी ही नहीं हुई बल्कि उन पर रासुका तक लगा दिया गया। शासन-प्रशासन इतना डरा कि उन्हें बनारस से बाहर भेज दिया गया। महीनों तक वह जेल में रहे। उस मौके पर भी अजय राय की रिहाई के लिए कुछ दिनों तक कांग्रेसी सड़कों पर दिखाई दिए। लेकिन वह भी जल्द ही वो परेड का दौर भी खत्म हो गया। हांलांकि वह आंदोलन भी कांग्रेस का नहीं बल्कि वाराणसी के संतों का आंदोलन था, जिसमें अजय राय के नेतृत्व में कांग्रेस ने शिरकत की थी। वो भी एक छोटे समूह नें, पूरी कांग्रेस उसमें भी सामने नहीं आई थी।
ऐसे में यूथ का सवाल वाजिब है, कि किस आधार पर कहा जाता है कि कांग्रेस आंदोलनों से उपजी पार्टी है और वो जज्बा आज भी कायम है। शायद इसी का जवाब देने की कोशिश की है अजय कुमार लल्लू ने, क्योंकि केवल बनारस ही नहीं समूचे पूर्वांचल और पूरे प्रदेश में कांग्रेस का बड़ा जनांदोलन पिछले 15-20 साल में नहीं देखने को मिला। कांग्रेस, यूथ कांग्रेस, सेवादल, एनएसयूआई, महिला संगठन किसी ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई। नतीजा सामने है।
और पीछे जाएं तो राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक आपात काल के बाद अगर कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी तो उसके पीछे भी कांग्रेस का सड़कों पर उतरना था, जेल जाना था। वो चाहे कितना बड़ा नेता क्यों न रहा हो। चाहे वह स्वयं इंदिरा गांधी रही हों या संजय गांधी। लेकिन वो तेवर अब राष्ट्रीय स्तर से भी गायब हो गया था। शायद यही वजह है कि निचले स्तर पर भी पार्टी खामोश हो गई।
लेकिन इस बार जब कुछ सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने गिरफ्तारी दी और 15-18 दिन तक जेल में रहे तो एक बार फिर से कांग्रेस के कुछ पुरनियों को बड़े आंदोलन की सुधि आई है। यहां बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र जिस मुद्दे पर जेल गए उसका आह्वान कांग्रेस ने नहीं बल्कि वाम फ्रंट ने किया था। यानी ये गिरफ्तारी भी कांग्रेस की नहीं कही जा सकती। बावजूद इसके उन जेल गए लोगों से मिलने के लिए प्रियंका गांधी स्वयं बनारस आईं। उसके तत्काल बाद कांग्रेस के एक बड़े नेता जो बनारस के सांसद भी रह चुके हैं के नेतृत्व में गत रविवार को पराड़कर भवन में एक सर्वदलीय बैठक हुई जिसमें जेल भरो आंदोल का ऐलान किया गया। हां! उस सभा में निमंत्रण के बावजूद राजेश मिश्र के अलावा फिर वो ही अंगुलियों पर गिने जा सकने वाले नेता पहुंचे जिन्हें लेकर प्रियंका गांधी के कार्यक्रम में हंगामा हुआ था।
उसके तुरंत बाद प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू बनारस आए और पार्टी के नवोदित पदाधिकारियों संग बैठक की है, मीडिया से जो उन्होंने कहा है उस पर भरोसा किया जाए तो शायद अब कांग्रेस 19 साल पुराने तेवर में दिखेगी। ऐसी उम्मीद बनारस के उन यूथ के बीच भी जगी है जो वो हकीकत में कांग्रेस को आंदोलनों की पार्टी के रूप में देखना व जानना चाहते हैं।
ऐसा नहीं कि मुद्दा सिर्फ नागरिकता कानून ही है, महंगाई, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, कानून व्यवस्था, खेती किसानी भी है। सबसे ऊपर जहां तक यूथ का सवाल है जिसे न मुकम्मल तालीम मिल पा रही है, न रोजगार, कोई मनमानी फीस वृद्धि से बेहाल है तो कोई लाइब्रेर की मुकम्मल सुविधा को तरस रहा है।

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