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वाराणसी

डाला छठ व्रत अनुष्ठान 11 नवंबर से, जानें कब कितने बजे देना है सूर्य नारायण को अर्घ्य

शहर में सूर्य़ षष्ठी व्रत अनुष्ठान की तैयारी शुरू, बड़ी मशक्कत के बाद डीरेका सूर्य सरोवर में व्रत पर्व मनाने की मिली अनुमति।

वाराणसीNov 04, 2018 / 12:35 pm

Ajay Chaturvedi

डाला छठ फाइल फोटो

डाला छठ फाइल फोटो

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. चार दिवसीय सूर्य षष्ठी व्रत अनुष्ठान पर्व आरंभ होने में महज कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। घरों में दीपावली के साथ ही डाला छठ की तैयारी के लिए ताने-बाने बुने जाने लगे हैं। बता दें कि धरती के प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण की पूजा का यब कठिन व्रत अनुष्ठान पुत्र-पौत्रादि के सुखद भविष्य, घर-परिवार में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्यादि की कामना से मनाया जाता है। कहने के बिहार से प्रचलित यह महापर्व अब एक तरह से पूरे देश के राष्ट्रीय पर्व के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। पूरी श्रद्धा-भक्ति से श्रद्धालु भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए इस अनुष्ठान की तैयारी में जुट गए हैं।
इस बार चार दिवसीय डाला छठ का शुभारंभ 11 नवंबर को नहाय-खाय से होगा। अगले दिन यानी 12 नवंबर को खऱना होगा फिर 13 नवंबर की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दान किया जाएगा। उसके अगले दिन अर्थात 14 नवंबर को उदीयमान (उगते सूर्य) सूर्य को अर्घ्य दान के साथ चार दिवसीय रवि षष्ठी व्रत अनुष्ठान पूर्ण होगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित बृज भूषण दुबे के अनुसार 13 नवंबर की शाम 05.25 बजे सूर्यास्त होगा, ऐसे में इससे पहले ही अर्घ्य दान कर देना चाहिए। वहीं 14 नवंबर की सुबह 06.36 बजे सूर्योदय के साथ ही अर्घ्य दिया जाएगा।
बता दें कि चार दिवसीय डाला छठ अनुष्ठान की शुरूआत नहाय खाय से होती है। नहाय खाय का अभिप्राय मन, वचन और कर्म के प्रति पूर्ण पवित्रता है। इस दिन सूर्य़ षष्ठी व्रत अनुष्ठान का संकल्प करने वाले भक्त गंगा तट, सरोवरों पर जा कर पूजन स्थल की सफाई करते हैं। मान्यता है कि स्वच्छता में कमी पर छठी मैया क्रुद्ध हो जाती हैं। नहाय खाय के दिन व्रती और उनके परिजन घाट सफाई के दौरान गीत गाते हैं, ‘ कोपि-कोपि बोलेलीं छठिय मइया, सुना महादेव मोरा घाटे दुबिया उपरजि गइले, मकड़ी बसेढ़ लेले..’। इस तरह से वो गंदगी का जिक्र कर उलेहना भी देते हैं और सफाई भी करते हैं। दरअसल इस अनुष्ठान में स्वच्छता का विशेष महत्व होता है, यही कारण है कि इसकी शुरूआत नहाय खाय से होती है। नहाय खाय के अगले दिन यानी पंचमी तिथि को खरना होता है। इस दिन व्रती सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो कर सूर्य की पूजा करते हैं। पूरा दिन निराजल व्रत रखा जाता है। दिन भर भजन कीर्तन होगा। फिर शाम ढलते ही चंद्रमा को अर्घ्य दान, शशि पूजन बाद बखीर (गुड़ से बनी खीर) या लौकी की खीर के साथ रोटी का सेवन किया जाता है। इसमें नमक से सर्वथा परहेज होता है। इसे खरना कहते है। इस बार यह खरना 12 नवंबर को होगा। फिर षष्ठी तिथि को 24 घंटे का कठिन व्रत होता है। खरना के बाद जो अन्न जल ग्रहण किए फिर वह सप्तमी को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के बाद ही प्रसाद ग्रहण किया जाता है। षष्ठी को खर उपवास के बाद शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दान होता है। सूर्य को पहला अर्घ्य 13 नवंबर की शाम को दिया जाएगा।
भगवान भास्कर को इस मंत्र, ‘ ऊं नमः सवित्रे जगदेकचक्शुवे जगत्प्रसूतिस्थ नाश हेतवे। त्रयी मनया त्रिगुणात्म धारिणे विरिचिं नारायण शंकरात्मने।’ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए व्रती गंगा या सरोवर में स्नान के बाद गीले बदन कमर तक जल में खड़े हो कर सूर्य के द्वादश नाम (12 नाम) से अर्घ्य देंगे। इसके तहत सबसे पहले दीप प्रज्ज्वलित किया जाएगा। उसे सूप में रखा जाएगा। व्रती सूप में दीप के सात ऋतु फल, विविध पकवान, खास तौर पर ठेकुआ, मीठा, पुष्प, माला, नारियल आदि रख कर कच्चे दूध से अर्घ्य देंगे। अर्घ्य दान के पश्चात गंगा में दीप दान होगा। फिर जलते दीपक व अन्य पूजन सामग्री को दऊरा में रख कर लोग घरों को लौटेंगे। हालांकि कुछ व्रती पूरी रात घाट या सरोवर के तट पर ही बिताते हैं। भजन कीर्तन होता है। इंतजार होता है सप्तमी के उगते सूर्य का। सप्तमी की सुबह पूर्व दिशा में लालिमा देखते ही शुरू हो जाती है पूजन प्रक्रिया। उदीयमान सूर्य को 14 नवंबर को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही चार दिवसीय व्रत अनुष्ठान की पूर्णाहुति होगी।
अर्घ्य दान में शरीफा, गॉगल (बड़ा नीबू), नाशपाती, सिंघाड़ा, मोसंबी, संतरा, सेब, कच्ची हल्दी, ईंख, अदरख आदि जरूर होता है। फिर सबसे महत्वपूर्ण है सूर्य की आकृति वाले ठेकुआ का। यह घर पर ही बनाया जाता है. इसके लिए साफ चूल्हा (इस अनुष्ठान के लिए अलग) जो मिट्टी का हो तो अति उत्तम उसी पर पकवान बनता है।
बड़ी मशक्कत के बाद डीजल रेल इंजन कारखाना प्रशासन ने इस बार छठ पूजा की अनुमति दी है। इसके लिए पूजा समिति को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। रेल मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक से इसकी दरख्वास्त करनी पडी। खैर अब अनुमति मिलने के बाद से पूजा समिति ही नहीं बल्कि डीरेका परिसर वासी और आस-पास के लोगों को भी प्रसन्नता है कि परंपरागत रूप से इस बार भी वे सूर्य सरोवर पर इस महान पर्व पर सूर्य नारायण को अर्घ्य दे पाएंगे।

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