पूजन सामग्री आचार्य पंडित विष्णुपति त्रिपाठी के अनुसार धनतेरस को पूजन के लिए दक्षिणावर्ती शंख, केसर, गंगाजल का पात्र, धूप, अगरबत्ती, दीपक, लाल वस्त्र आदि का इंतजाम पहले से कर लें। पूजन विधि
आचार्य त्रिपाठी ने बताया कि साधक अपने सामने गुरुदे व लक्ष्मी का चित्र रखें। उनके सामने लाल रंग का वस्त्र (रक्त कंद) बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती संख रख दें। उसके ऊपर केसर, सतिया (स्वास्तिक) बनाएं तथा कुमकुम से तिलक लगाएं। फिर स्फटिक की माला से मंत्र का 07 बार जप करें। तीन दिन तक ऐसा करना योग्य है। इतने से ही मंत्र साधना सिद्ध होती है। मंत्रजप पूरा होने के बाद लाल वस्त्र में शंख को बांध कर रख दें। आचार्य त्रिपाठी के अनुसार जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी।
आचार्य त्रिपाठी ने बताया कि साधक अपने सामने गुरुदे व लक्ष्मी का चित्र रखें। उनके सामने लाल रंग का वस्त्र (रक्त कंद) बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती संख रख दें। उसके ऊपर केसर, सतिया (स्वास्तिक) बनाएं तथा कुमकुम से तिलक लगाएं। फिर स्फटिक की माला से मंत्र का 07 बार जप करें। तीन दिन तक ऐसा करना योग्य है। इतने से ही मंत्र साधना सिद्ध होती है। मंत्रजप पूरा होने के बाद लाल वस्त्र में शंख को बांध कर रख दें। आचार्य त्रिपाठी के अनुसार जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी।
इस मंत्र का करना है जप
”ऊँ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कबेराय मम गृह स्थिरो ह्रीं ऊँ नमः।” दीपावली पूजन विधि
दीपावली पर लोग लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की साधना करते हैं। लेकिन आचार्य त्रिपाठी के अनुसार सबसे सरल उपाय यह है…
दीपावली के दिन से तीन तक यानी भाई दूज तक स्वच्छ कमरे में धूप, दीप व अगरबत्ती जलाकर, पीला वस्त्र पहनें, ललाट पर केसर का तिलक करें, स्फटिक मोतियों से बनी माला द्वारा नित्य प्रातः काल निम्न मंत्र की दो माला जप करें…
मंत्र
”ऊँ नमः भाग्यलक्ष्मी च विद्महे। अष्टलक्ष्मी च धीमहि तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात।”
वह बताते हैं कि दीपवाली लक्ष्मी जी का जन्मदिवस है। समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं लक्ष्मी जी। ऐसे में घर में लक्ष्मी जी के वास, दरिद्रता विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह के लिए यह साधना करने वाले पर लक्ष्मी जी जरूर प्रसन्न होती हैं।
”ऊँ नमः भाग्यलक्ष्मी च विद्महे। अष्टलक्ष्मी च धीमहि तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात।”
वह बताते हैं कि दीपवाली लक्ष्मी जी का जन्मदिवस है। समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं लक्ष्मी जी। ऐसे में घर में लक्ष्मी जी के वास, दरिद्रता विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह के लिए यह साधना करने वाले पर लक्ष्मी जी जरूर प्रसन्न होती हैं।