भिखारी ठाकुर पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कल्पना ने कहा कि, भिखारी ठाकुर को मैं तीन रूप में देखती हूं। एक गीत के रूप में, एक नाटककार के रूप में और एक लोक कलाकार के रूप में। कहा कि लोक साहित्य में स्त्री बहुत लिबरल होकर अपनी बात कह सकती है लेकिन शास्त्र में यह आज़ादी नहीं है। वहां पुरुष वर्ग का कब्ज़ा है। इस बात पर चिंता व्यक्त की की ‘लागल जोबना में चोट’ को वह साहित्य के लिए कहेंगे, ‘लागल करेजवा में चोट’, जबकि जोबना व करेजवा में बहुत अंतर है। इस अवसर पर पूर्वी, विरहा, प्रसव गीत के साथ उन्होंने अन्य कई गीत प्रस्तुत किए और कहा कि भोजपुरी में योजनाबद्ध आंदोलन जरूरत है।
संवाद सत्र के अध्यक्ष प्रो. पीके मिश्र ने कहा कि भोजपुरी गर्व करने की भाषा है। उसके गीतों व साहित्य में जीवनकी विपुलता है। उसे उद्यम की भाषा बनाने पर जोर फ़िया जाना चाहिए। विशिष्ट अतिथि बीएचयू के वित्त अधिकारी श्याम बाबू पटेल ने कहा कि भोजपुरी भाषा व जनपद में विविधता है। इसमें जीवन का सरल प्रवाह मिलता है। स्वागत वक्तव्य देते हुए केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि भोजपुरी संस्कृति में लाठी के बाद गमछा का बहुत बड़ा महत्व है। किसी भी कलाकार की सबसे बड़ी पहचान होती है कि वह अपनी विरासत को कितना संभाल पा रहा है। उन्होंने कहा कि कल्पनाजी ने रसिक श्रोताके साथ सहृदस्य श्रोताओं को भी अपनी ओर आकर्षित किया है।
सत्र का संचालन रुद्रप्रताप सिंह ने किया तथा प्रो चम्पा कुमारी सिंह ने आभार जताया। विश्वविद्यालय का कुलगीत सौम्या वर्मा, अमित और मनोहर ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रोफ शैलेन्द्र कुमार शर्मा, देवरिया के सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी, मुम्बई से परवेज के साथ ही केंद्र के छात्र, छात्राओं के साथ ही विश्वविद्यालय के अनेक विभागों के छात्रों की उपस्थिति बनी रही। केंद्र के समन्वयक प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल द्वारा मुख्य अतिथि कल्पना को अंग वस्त्रम के रूप में भोजपुरी अध्ययन केंद्र का ‘गमछा’ भेंट कर सम्मानित किया।