मई के महीने में कोरोना की दूसरी लहर अपने चम पर थी और इस दौरान मौतें बहुत ज्यादा हो रही थीं। कई जिलों में बड़ी संख्या में शवों को गंगा में बहाया गया। बनारस से बक्सर के बीच तो सैकड़ों बहते हुए शव मिले थे। इसके बाद आम लोग, गंगा प्रेमी और वैज्ञानिक भी गंगा के पानी में संक्रमण को लेकर चिंतित थे। संक्रमण का पता लगाने के लिये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ओर लखनऊ के बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गंगा में 16 अलग-अलग जगहों से लिये गए गंगा जल के सैंपल पर दो महीने तक शोध किया। सैपलों का बारीकी से परीक्षण कर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि गंगा जल में संक्रमण नहीं।
शोध टीम का हिस्सा रहे बीएचयू के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार सैंपलिंग में इस बात का खयाल रखा गया कि किसी प्रकार की गलती न हो। सैंपल गंगा की बीच धारा, किनारे और सीवरेज से 10 मीटर की दूरी पर लिये गए। आरटीपीसीआर जांच में सैंपल नेगेटिव आए। उन्होंने बताया है कि दूसरे चरण में गंगा में गिरने से पहले और तुरंत बाद सीवरेज का परीक्षण कर क्लीनिकल ट्रायल कर ये जानने की कोशिश होगी कि क्या गंगाजल कोरोना को मात दे सकता है। उनके अनुसार गंगा की आई रिपोर्ट के बाद दूसरी नदियों का सैंपल लेने की योजना भी बनाई जा रही है। दरअसल वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि काेरोना से किसी नदी में संक्रमण नहीं हुआ या फिर किसी विशेष कारण के चलते गंगा का जल संक्रमित नहीं हुआ।
बताते चलें कि इस बीच वाराणसी में शैवाल पनपने से गंगाजल हरा हो जाने के बाद भी इसकी विस्तृत जांच की गई थी। इस जांच में पता चला कि गंगा में हरे शैवाल का कारण मिर्जापुर के विंध्याचल स्थित एसटीपी से बहकर आने वाला पानी है।