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वाराणसी

इस बाहुबली ने पहली बार जेल में रहते हुए जीता था चुनाव, इसके बाद राजनीति में दबंगों की इट्री हुई शुरू

लगातार 22 साल विधायक व मंत्री बनाने का मिला मौका, आसान नहीं है राजनीति से बाहुबलियों को खत्म करना

वाराणसीOct 16, 2018 / 05:33 pm

Devesh Singh

Hari Shankar Tiwari

Hari Shankar Tiwari

वाराणसी. राजनीति में बाहुबलियों की इंट्री को लेकर हमेशा चर्चा होती रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था लेकिन चुनाव लडऩे से रोक पर बड़ा निर्णय नहीं हो पाया है। लोकसभा चुनाव 2019 में फिर से कई बाहुबली चुनावी मैदान में ताल ठोकने वाले हैं। ऐसे में हम उस बाहुबली की बात करते हैं जिसने जेल में रहते हुए चुनाव जीता था इसके बाद से राजनीति में बाहुबलियों की इंट्री शुरू हुई थी।
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वर्षाे पूर्व की बात की जाये तो राजनीति व जरायम की दुनिया अलग-अलग चलती थी। चुनाव के समय राजनीतिक दल बाहुबलियों की मदद लेते थे। बाद में समय बदलने लगा। बाहुबलियों का लगा कि जब उनकी मदद से कोई नेता बन सकता है तो फिर वह चुनाव क्यों नहीं लड़ सकते हैं। इसी सोच के साथ बाहुबलियों ने राजनीति में इंट्री के लिए जंग शुरू की। यूपी में माना जाता है कि 1985 से बाहुबलियों की राजनीति में इंट्री शुरू हुई है। इस समय गोरखपुर जिले की चिल्लूपार सीट से बाहुबली हरिशंकर तिवारी चुनाव लड़े थे। विभिन्न आरोपों में जेल में बंद हरिशंकर तिवारी खुद को कांग्रेस से जुड़ा हुआ बताते थे लेकिन टिकट नहीं मिलने पर निर्दल ही चुनाव लड़ा था। हरिशंकर तिवारी ने चुनाव जीत कर यह साबित किया था कि राजनीति में बाहुबलियों का प्रवेश हो सकता है। माना जाता है कि हरिशंकर तिवारी के चुनाव जीतने के साथ ही भारतीय राजनीति में अपराध के राजनीतिकरण पर बहस शुरू हुई थी जो आज भी चलती है।
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सरकार किसी की भी हो, बजता था हरिशंकर तिवारी का डंका
बाहुबली रहे हरिशंकर तिवारी को ब्राह्मणों का बड़ा नेता माना जाता है इसके चलते सरकार यूपी में सरकार किसी की भी रहे, लेकिन हरिशंकर तिवारी का डंका बजता था। जेल में रहते हुए हरिशंकर तिवारी पहली बार विधायक बने थे इसके बाद लगातार 22वर्षो तक विधायक का चुनाव जीतते आये थे। 1997 से 2007 तक मंत्री भी रहे। सबसे पहले मंत्री बनने का मौका कल्याण सिंह सरकार में मिला था इसके बाद राजनाथ सिंह व मायावती के भी सरकार में मंत्री रहे। अधिक आयु हो जाने के कारण हरिशंकर तिवारी अब सक्रिय राजनीति में नहीं है लेकिन इतना कह जाता है कि गोरखपुर में जिस प्रत्याशी को हरिशंकर तिवारी का आशीर्वाद मिल जाता है उस प्रत्याशी का चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
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सीएम योगी आदित्यनाथ व हरिशंकर तिवारी खेमे में नहीं है अच्छा संबंध
गोरखपुर में पहले हरिशंकर तिवारी व वीरेन्द्र शाही के बीच अदावत चलती थी बाद में हरिशंकर तिवारी व वीरेन्द्र शाही दोनों ही राजनीति के क्षेत्र में आकर अपनी लड़ाई लडऩे लगे। १९९७ में लखनऊ में वीरेन्द्र शाही की हत के बाद इस लड़ाई में विराम लग गया था बाद में सीएम योगी आदित्यनाथ का खेमा जब शक्तिशाली हुआ तो हाता (हरिशंकर तिवारी का आवास)से अच्छे संबंध नहीं थे। यूपी का सीएम बनते ही हाता पर छापा पड़ गया था जिसके लेकर सीएम योगी सरकार पर कई आरोप लगे थे।
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