script#HariyaliTeej2019 हरियाली तीज पर इस शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से करें भगवान शिव पार्वती की पूजा, लंबी होगी पति की उम्र | Hariyali Teej 2019 Shubh muhurt date time and Lord Shiva Parvati Puja | Patrika News
वाराणसी

#HariyaliTeej2019 हरियाली तीज पर इस शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से करें भगवान शिव पार्वती की पूजा, लंबी होगी पति की उम्र

कुंवारी लड़कियां भी निष्ठा से करें यह व्रत तो मिलेगा मनचाहा वर

वाराणसीAug 01, 2019 / 03:38 pm

sarveshwari Mishra

Hariyali Teej

Hariyali Teej

वाराणसी. हरियाली तीज जिसे हमें श्रावणी तीज भी कहते हैं। यह सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इसे उत्तर भारत में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में भी मनाते हैं। हर व्रत सुहागिनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह त्योहार शिव पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सावन में चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस त्योहार में झूला झूलने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा से सारे संकटों के बादल छट जाते हैं और सुहागन महिलाओं को पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हरियाली तीज का मुहूर्त
हरियाली तीज पर तृतीया तिथि प्रारंभ – 01:36 बजे (3 अगस्त) से शुरू होकर 22:05 बजे (3 अगस्त) तक समाप्त हो जाएगी।

पूजा विधि
हरियाली तीज के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद मन में पूजा करने का संकल्प लें। पूजा शुरू करने से पहले काली मिट्टी से भगवान शिवजी और मां पार्वती तथा भगवान गणेशजी की मूर्ति बनाएं। फिर थाली में सुहाग की सामग्री को सजाकर माता पार्वती को अर्पण करें। ऐसा करने के बाद भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। उसके बाद तीज की कथा सुनें और पढें।
हरियाली तीज व्रत कथा
एक बार शिव जी ने पार्वती जी से कहा- हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने मुझे वर के रुप में पाने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या की थी। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तपस्या की। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दु:खी और नाराज थे। ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे।
जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले- ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।’
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, ‘तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी। तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा? उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली।
तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। श्रावण तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा, ‘पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।’ पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया।’ भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, ‘हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्‍व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं।’

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