दायर याचिका में गजेटियर का हवाला बता दें कि ये वाद अतुल कुल, राजेंद्र प्रसाद आदि की ओर से दायर किया गया था। इसमें कहा गया है कि पंचगंगा घाट स्थित प्राचीनतम बिंदुमाधव मंदिर मां गंगा के तट पर स्थित है। ये हजार साल पुराना मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु का विग्रह है जहां सनातन हिंदू धर्म को मानने वाले नित्य पूजन-अर्चन, राग-भोग, आरती करते रहे। इसका उल्लेख काशी पर आधारित पुसतक वाराणसी वैभव में भी मिलता है। वाराणसी गजेटियर 1965 में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर व बिंदुाधव मंदिर के ध्वस्तीकरण का जिक्र किया गया है। उस गजेटियर के अनुसार औरंगजेब के आदेश से दोनों मंदिरों को गिराया गया था।
मंदिर परिसर पुरातात्विक धरोहर बिंदु माधव मंदिर के ध्वस्तीकरण के बाद मुस्लिम उपासना स्थल का निर्माण मुस्लिम शासकों ने कराया। वर्तमान में भी मौके का अवलोकन करने से स्पष्ट पता चलता है कि पुराने मंदिर के अवशेष पर मुस्लिम उपासन स्थल का निर्माण कराया गया है। भारत सरकार के आदेश से उस प्राचीन स्मारक को पुरातात्वक स्थल व अवशेष (संशोधन तथा विधिमान्य करण अधिनियम 1610) के प्रावधान के तहत इस स्मारक की सौ मीरटर की सीमा में आने वाले क्षेत्र में निर्माण खनन, मरम्मत, प्रयोजन निषिद्ध घोषित किया गया है। इसका उल्लंघन करने पर दो वर्ष कारावास या एक लाख का जुरमाना या दोनो किया जा सकता है।
वादीगण व सनातन हिंदुओं को मिले पूजा-पाठ का अघिकार इन उपरोक्त आदेशों व नियमों की उपेक्षा कर प्रतिवादीगण बिंदु माधव प्राचीन स्थल पर अनाधिकार रूप से जुड़े अन्य लोग प्रवेश करते हैं। ये हिंदू धर्म को मानने वालों पर गहरा प्रहार है। ऐसे में अदालत से गुजारिश है कि वादीगण के पक्ष में स्थाई आदेश की डिग्री पारित करते हुए प्रतिवादीगण को निषिद्ध किया जाए कि उस प्राचीन बिंदु माधव मंदिर ज धरहा पंचगंगा घधाट के नाम से जाना जाता है में वादीगण व हिंदू धर्म को मानने वाले पूजा-पाठ करने व धार्मिक कार्य करने से प्रतिवादीगण या उनसे जुड़े समुदाय के लग कोई विघ्न न डालें और धार्मिक विवाद न पैदा करें। इसी का अनुतोष मांगा गया है।