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वाराणसी

मायावती की राजनीतिक चाल से कहीं दलित वोटj भी न हो जाये बसपा से दूर

अगर वो खुद और अपने दल पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करतीं रहीं तो महागठबंधन का बन पाना आसान नहीं होगा

वाराणसीSep 22, 2018 / 04:56 pm

Ashish Shukla

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अगर वो खुद और अपने दल पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करतीं रहीं तो महागठबंधन का बन पाना आसान नहीं होगा

वाराणसी. अभी तीन दिन पहले ही छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनाव के लिए बसपा की सुप्रीमों मायावती ने जिस तरह अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन किया है। उससे ये साफ है कि वो आने समय में बिना किसी राजनीतिक दल को भाव दिये अपनी पार्टी को उपर उठाने का काम करेंगी। लेकिन माया के इस फैसले ने ये भी सवाल खड़ा किया है कि आखिर आने वाले 2019 के चुनाव में अगर वो खुद और अपने दल पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करतीं रहीं तो महागठबंधन का बन पाना आसान नहीं होगा। इसके साथ ही अलग-अलग सपा-बसपा औक कांग्रेस चुनाव लड़ी तो हार भाजपा को बड़े फायदे कि उम्मीद हो सकती है। ऐसे में बसपा के वोटबैंक में इस बात का डर सता रहा है कि बहन जी कहीं 2014 की तरह चुनाव लड़ीं तो आखिर उनका क्या होगा।
पत्रिका से बातचीत में बसपा संगठन के लिए काम करने वाले गाजीपुर अरूण भारती कहते हैं कि उन्हे इस बात का डर है कि राजनीति बाजीगरी में कहीं बहन जी अकेली न पड़ जायें। क्यूंकि फूलपुर और गोरखपुर के चुनाव में जिस, तरीके से सपा और बसपा ने एकता दिखाकर भाजपा को हराया है उससे लगता है कि आने वाले समय में भी हमारी एकता भाजपा को सत्ता से दूर कर सकती है। लेकिन अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ जोगी से हाथ मिलाना। व यूपी में सपा के साथ गठबंधन को लेकर कोई फैसला अभी तक न कर पाना ये बताता है कि उनकी महत्वाकांक्षा का खामियाजा बसपा के मूल वोटरों को उठाना पड़ सकता है।
वहीं जौनपुर के रहने वाले विमल कुमार कहते हैं कि हम सब के मन में ये जरूर है कि भाजपा को रोका जाय। ऐसे में सपा-बसपा का गठबंधन होता है तो कई बसपा के सांसद चुनाव जीतेंगे। जिससे हम उनके पास जाकर अपनी बात कह पायेंगे। लेकिन अगर गठबंधन न हुआ ये कह पना मुश्किल है कि बसपा को कितनी सीटें मिल पायेंगी। इसलिए गठबंधन होना जरूरी है।
बनारस के कुछ बसपा कैडर के लोग गठबंधन न होने पाने के सवाल पर कहते हैं कि भाजपा को हराने के लिए जो उम्मीदवार चुनाव में बेहतर लड़ रहा होगा उसी को वोट देंगे। चाहे वह बसपा के अलावा सपा का ही क्यूं न हो। इनका कहना है कि सत्ता नहीं रहता तो संगठन अपने आप कमजोर हो जाता है। इसलिए बसपा सुप्रीमों को पार्टी का मजबूती के लिए गठबंधन का रास्ता अपनाकर साथ चुनाव लड़ना चाहिए। इसके अलावा उन्हे सबसे पहले लोकसभा चुनाव के लिए फोकस करना चाहिए। नहीं तो आने वाले समय में उनका वोटबैंक भी प्रभावित हो सकता है।

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