प्रकाश ने पत्रिका को हाईकोर्ट के आदेश की प्रति तथा विधानपरिषद में उठाए गए सवालों के दस्तावेज भी मुहैया कराए हैं। उनका कहना है कि लाहौरी टोला स्थित भवन संख्या डी-1/24 में रहने वाले किरायेदार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रमेश धानुका बनाम उत्तर प्रदेश राज्य वगैरह के प्रकरण में 16 अप्रैल 2018 को यथास्थिति बनाए रखने तथा भवन को न तोड़ने का निर्देश निर्गत किया है। बताया कि इसी भवन संख्या का प्रश्न
काम रोको के रूप में 28 मार्च 2018 को मैने ही विधान परिषद में उठाया था। इस भवन को व्यावसायिक भवन दर्शा कर 15 मार्च 2018 को मंदिर प्रशासन ने राज्यपाल के नाम से 95, 98,333 रुपये में क्रमांक संख्या 409 पर पंजीकृत कराया था और किरायेदारों के नाम कब्जे को छिपा दिया था। शासनादेश का उल्लंघन करते हुए न्याय विभाग से विधि परीक्षण भी नहीं कराया था। इस याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपिका बनाम उत्तर प्रदेश वैगरह से संबद्ध कर दिया है।
सपा नेता ने बताया कि इस प्रकरण में भी मंदिर प्रशासन ने अनेक किरायेदारों के कब्जे को छिपा कर 23 फरवरी को आवासीय भवन के रूप में मनमाना दाम देकर एक करोड़ 88 लाख रुपये में खरीदा था उच्च न्यायालय ने इसमें भी यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। शतरुद्र प्रकाश ने बताया कि बावजूद इसके मंदिर प्रशासन ने यूपिका के एमडी को पत्र लिख कर याचिका वापस लेने का आग्रह किया है जबकि इसमें यूपिका के अलावा 65-70 वर्षों पुराने अन्य कई किरायेदार काबिज हैं।
उन्होंने कहा कि बाबा के भक्तों द्वारा चढ़ाए गए पैसों से भवनों क खरीद में अनाप-शनाम रुपया पानी की तरह बहाना महापाप है और ज्योतिर्लिंग की जगह राज्यपाल को स्वामी बनाना तो मंदिर की गरिमा को गिराना है। यहां अनेक वर्षों से रहने वाले शिवभक्त चना चबेना गंगजल जो सेवे करतार, काशी कबहूं न छोड़िए विश्वनाथ दरबार वाले हैं। बाबा दरबार में ही रहेंगे बाबा के दरबारी। मंदिर प्रशासन
शिव भक्तों की धार्मिक भावना के खिलाफ दुर्भावना से ग्रसित हो कर आतताइयों जैसा बर्ताव कर रहा है जो न लोक भावना के अनुकूल है न पारदर्शी है। मंदिर प्रशासन को विवादास्पद संपत्ति खरीदने से पहले लोक मशविरा लेने के लिए पूर्ण योजना को सार्वजनिक करना चाहिए।