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वाराणसी

मलमास में भूल कर भी न करें ये काम, नहीं तो होगी हानि

16 मई से शुरू हो रहा है मलमास, 13 जून तक नहीं होंगे शुभ कार्य, करें विष्णु की आराधना।

वाराणसीMay 08, 2018 / 02:37 pm

Ajay Chaturvedi

मलमास का प्रतीकात्मक फोटो

मलमास का प्रतीकात्मक फोटो

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. मलमास यानी अधिकमास यानी पुरुषोत्तम मास। सनातनी हिंदू कैलेंडर को व्यवस्थित करने वाला काल ही अधिकमास या मलमास कहलाता है। तीन वर्ष में एक बार इसका योग बनता है। कहा जाता है कि सनातन धर्म में काल गणना की समानता के लिए अर्थात सूर्च व चंद्र गणना दोनों पद्धतियों की समान काल गणना को मलमास की व्यवस्था की गई है।
काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री और काशी विश्वनाथ कार्यपालक समिति के पूर्व सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने पत्रिका को बताया कि चंद्र गणना पद्धति में चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्षों का एक मास माना जाता है। प्रथम पक्ष को अमांत तथा दूसरे को पूर्णिमांत कहते हैं। कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन से पूर्णिमा तक प्रत्येक मास में 29 दिन होते हैं। इस दृष्टि से इन गणना के अनुसार एक वर्ष 354 दिन का होता है। वहीं पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 365 दिन, छह घंटे लगते हैं। इस प्रकार सूर्य व चंद्र गणना पद्धति में प्रत्येक वर्ष 11 दिन, तीन घड़ी, लगभग 50 तल का अंतर पड़ता है। यह अंतर तीन साल में बढ़ते-बढ़ते लगभग एक मास हो जाता है। इसी कारण हर वर्ष होली, दीपावली, दशहरा, रक्षाबंधन आदि पर्व कुछ आगे-पीछे होते हैं। इस अंतर को पूरा करने के लिए ही भारतीय ज्योतिष गणित शास्त्र में तीन वर्ष में एक अधिक मास की व्यवस्था की गई है ताकि काल गणना समान हो जाए। इस बार अधिक या मलमास 16 मई से शुरू होगा जो 13 जून तक रहेगा। ऐसे में सवत् 2075 में ज्येष्ठ मास की वृद्धि है। अर्थात संवत् 2075, 13 महीने का होगा।
पंडित द्विवेदी ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र ने यह भी अनुभव किया कि इस गणना में भी कहीं न कहीं कुछ सूक्ष्म अंतर रह जाता है जिसे दूर करने के लिए क्षय मास की व्यवस्था की गई है। यह क्षय मास 190 वर्ष में एक बार आता है।
उन्होंने बताया कि मलमास में सभी शुभ कार्य शास्त्र में वर्जित बताए गए हैं। इन दिनों हर सनातनधर्मी को गंगा स्नान-दान और श्री हरि विष्णु की आराधना करनी चाहिए। अधिक मास के 33 देव हैं, जिसका अर्थ है कि 33 उद्देश्यों की प्राप्ति के निमित्त 33 मालपुआ को कांस्य पात्र में रख कर, घी व स्वार्णादि ब्राह्मण को दान करना चाहिए। इससे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस अवधि में विष्णु पूजा करने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु मंत्र आदि का जप नियमित रूप से करना चाहिए।

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