पूर्वांचल में जौनपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और गोरखपुर में मुहर्रम बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। कहा जाता है कि शिया आबादी की वजह से लखलऊ के बाद जौनपुर में मुहर्रम का खास एहतमाम होता है। इसी तरह इलाहाबाद और गोरखपुर में भी मुहरर्म के मौके पर बड़े जुलूस और अखाड़े व ऐतिहासिक ताजिया निकलते हैं, मेला भी लगता है। पर इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए इन पर पाबंदी है। किसी भी धार्मिक कार्य के लिये पांच से ज्यादा लोगों को जुटने की इजाजत नहीं। अकेले बनारस में ही 500 से अधिक ताजिया, सैकड़ों अखाड़े और दर्जनों बड़े जुलूस जो हर साल निकलते थे इस बार नहीं निकले।
मुहर्रम में जिस तरह का सूनापन देखने को मिल रहा है उससे वाराणसी की ऐतिहासिक रांगे की ताजिया के सरपरस्त मुमताज अली बाबर ने कहा कि मुहर्रम में जिस तरह का सूनापन देखने को मिल रहा है ऐसा कभी नहीं रहा। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये शासन प्रशासन की ओर से कुछ पाबंदियों की गाइडलाइन का पालन कराया जा रहा है। 20 अगस्त को पहली मुहर्रम से सारे आयोजन स्थगित हैं। नवीं मुहर्रम को ताजिया भी नहीं बैठाया जाएगा और न ही अखाड़े और जुलूस आएंगे। तीसरे और छठे मुहर्रम को अलम, छह को दुलदुल का जुलूस भी नहीं निकला। नवीं मुहर्रम को नाल दूल्हे का जुलूस भी स्थगित है जो पूरे शहर में घूमता है।
इस्लामिया मस्जिद के इमाम मुफ्ती हारून रशीद नक्शबंदी का कहना है कि कोरोना महामारी का फैलाव रोकने के लिये सरकार और लोकल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से बचाव के लिये कुछ गाइडलाइंस और पाबंदियां सभी धार्मिक आयोजनों पर लगाई गई हैं। उनका पालन जरूरी है। मुहर्रम का एहतमाम भी इसी गाइडलाइन के साथ सादगी के तरीके से हो रहा है।
शिया आलिम सैय्यद फरमान हैदर ने बताया कि वाराणसी में कई ऐतिहासिक जुलूस निकलते हैं। दुनिया का सबसे लम्बा 50 घंटे से ज्यादा चलने वाला जुलूस कच्ची सराय दालमंडी से छठीं मुहर्रम को निकलता है। लगातार दिन रात चलने वाला यह जुलूस इस बार कोरोना के चलते स्थगित रहा। जौनपुर के अम्बर अब्बास ने बताया कि हर साल जिस तरह से ताजिया निकाला जाता था। सड़कों पर जुलूस निकलते थे, मातम होता था, लेकिन इस बार कोरोना के चलते ऐसा नहीं हो पाया। कोरोना के चलते सभी को अपने त्योहार मनाने में दुश्वारियां आयीं।
कोरोना ने न सिर्फ साल भर में एक बार मनाए जाने वाले त्योहारों की रौनक छीन ली है, बल्कि इससे जुड़े रोजगार पर भी इसका असर हुआ है। वाराणसी, इलाहाबाद और गोरखपुर में बांस और कागज से ताजिया तैयार करने वालों की बड़ी तादाद है, लेकिन इस बार उन्हें ऑर्डर नहीं मिले। कौशाम्बी जिले के कड़ा में बांस की खपच्चियों से बना खूबसूरत ताजिया तो विदेशों तक जाता है, लेकिन इसबार गांव में सन्नाटा हैं। जो लोग मुहर्रम में ताजिया बनाने में मशगूल रहते थे, उनके हाथ खाली हैं। बनारस में रांगे की ताजिया, चपरखट की ताजिया, गोरखपुर में जौ आदि की ऐतिहासिक ताजिया बनाने वाले कारीगर बेरोजगार हैं। रोजगार से जुड़े लोगों का कहना है कि इस साल के तीज त्योहार तो कोरोना की भेंट चढ़ गए, बस यही दुआ है कि इस महामारी से जान छूटे और अगले साल मुहर्रम का एहतमाम उसी जोशो खरोश से हो।