न्यूरोलॉजिस्ट प्रो वीएन मिश्र ने सरकार को दी सलाह, मिर्गी पर नियंत्रण को बनाए जागरूकता प्रोग्राम
मिर्गी व लकवा रोग विशेषज्ञ, सर सुंदरलाल चिकित्सालय के पूर्व एमएस प्रो वीएन मिश्र से पत्रिका की खास बातचीत
-बताया, सीवर मिश्रित पेयजल, खुले में बिकने वाला मांस और शराब का सेवन है मिर्गी के लिए घातक- लोगों को मिर्गी रोग के निदान के लिए जागरूक करना है जरूरी- प्रो मिश्र खुद बना चुके हैं दो फिल्म-गांव के लोगों को समझाना, जागरूक करना है बेहद जरूरी
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी वाराणसी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष व सर सुंदर लाल चिकित्सालय के पूर्व चिकित्साधीक्षक प्रो विजय नाथ मिश्र वर्षों से मिर्गी रोग के निदान पर काम कर रहे हैँ। इसमें उनकी दक्षता है। एसजीपीजीआई से मास्टर डिग्री लेते समय ही मिर्गी रोगियों और उनके परिवार की पीड़ा को उन्होंने नजदीक से समझा और उनके दर्द को दूर करने की ठानी। यही वजह थी कि उन्होंने मिर्गी रोग नियंत्रण में विशेषज्ञता हासिल की। वह ऐसे रोगियों का इलाज करने के साथ लोगो को जागरूक करने में भी जुटे हैं। इसके लिए वाराणसी और आस-पास के गांवों में टीम बनाई है। खुद भी कैंप करते हैं और लोगों को रोग का कारण और निदान की जानकारी देते हैँ। खुद दो फिल्में भी बनाई है। पत्रिका से बातचीत में उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि सरकार मिर्गी रोग नियंत्रण के बाबत लोगों को जागरूक करने के लिए एक कार्यक्रम तैयार करे ताकि देश भर में जागरूकता अभियान चला कर इस खतरनाक बीमारी से लोगों को बचाया जा सके।
बता दें कि प्रो मिश्र आईएमएस बीएचयू के छात्र रहे, यहीं से उन्होंने एमबीबीएस किया। फिर उच्च शिक्ष के लिए वह एसजीपीजीआई गए। दिल्ली में भी कई वर्षों तक कार्य किया। उनका विषय मिर्गी है। पत्रिका से बताचीत में प्रो मिश्र ने कहा कि यूं तो मिर्गी के कई कारण हैं लेकिन सीवर मिश्रित पानी का पेट में जाना, बाजार में खुले में बिकने वाले मांस या शराब का सेवन मिर्गी के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। उन्होंने इन सभी से दूर रहने की सलाह दी।
प्रो मिश्र जो लगातार मिर्गी रोग नियंत्रण के लिए लगे है, दो डाक्यूमेंट्री भी तैयार कर चुके हैं, खास बात यह कि इन फिल्मों में रोगियों की भागीदारी है। वह अक्सर गांवों का दौरा करते रहते हैँ। उन्होंने बताया कि अभी कई और फिल्में प्रस्तावित हैं। प्रो मिश्र ने बताया कि वह जब मिर्जापुर में गए तो लोगों ने बताया कि खटमल खिलाने से मिर्गी के झटके नहीं आते, काली गाय का गोमूत्र पिलाने से मिर्गी से छुटकारा मिल जाता है। वह बताते हैं कि इस तरह के अनेक नुस्खे सुनने को मिलते हैं वह भी इस 21वीं सदी में। यह सब लोगों में इस रोग के प्रति जागरूकता न होने के कारण है।
बताया कि सबसे दुःखद होता है बेटियों का मिर्गी रोग से ग्रसित होना। उनसे कोई शादी नहीं करता। ऐसी बेटियों के माता-पिता पर क्या गुजरती होगी इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। बताया कि ऐसी कई लड़कियों को ठीक कर उनकी शादियां भी करवाई हैं। यह प्रक्रिया अभी जारी है। ऐसे लड़कों की भी शादी करवाई है जिन्हें शादी के मंडप में झटका आया और लड़की वालों ने शादी से इंकार कर दिया।
प्रो मिश्र का कहना है कि तीन वजह है रोग न दूर होने का, एक तो कोई भी ऐसे रोगियों की बात सुनता नहीं, दूसरे उनका समुचित इलाज नहीं होता। दवाएं नियमित तौर से नहीं दी जातीं। सबसे अहम तीसरी बात है कि इन रोगियों के लिए अब तक मुफ्त दवा की व्यवस्था नहीं रही। लेकिन अब वह समस्या भी दूर हो गई है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू आयुस्मान भारत योजना के तहत इन रोगियों को भी मुफ्त में दवा मिलने लगी है। कहा कि इसके लिए भी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। उन्हें बताने की जरूरत है कि मिर्गी जूता-चप्पल सुंघाने, खटमल खिलाने या गोमूत्र से नहीं दूर होगा, बल्कि इसका इलाज करना होगा, आयुस्मान कार्ड बनवाकर मुफ्त इलाज और दवा हासिल की जा सकती है।
अस्पतालों में आने वाले मरीजों और उनके तीमारदारों संग जूनियर डॉक्टर्स की होने वाली कहासुनी, झड़प, मारपीट पर प्रो मिश्र ने काफी गंभीर हो कर कहा, इसके लिए डॉक्टर्स खास तौर पर जूनियर डॉक्टर्स को सयंम बरतना चाहिए। रोगी पर समय देना चाहिए, तीमारदारों को बताना चाहिए कि रोगी को क्या हुआ है, कैसे इलाज होगा। अगर रोगी और तीमारदारों संग सलीके से पेश आया जाय तो यह नौबत नहीं आएगी। दूसरे पूरे अस्पताल सिस्टम को साथ लेकर चलना होगा। इसमें नर्सेज भी हैं, वार्ड ब्वाय हैं, जूनियर डॉक्टर्स हैं और अंत में विशेषज्ञ सीनियर डॉक्टर्स हैं। साथ ही अस्पताल का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, सफाई कर्मचारी को भी टीम का हिस्सा मान कर चलना होगा। टीम एफर्ट से ही एक रोगी को बेहतर इलाज दिया जा सकता है।
बता दें कि सर सुंदरला चिकित्सालय के एमएस रहते उन्होंने मरीजों को मुप्त भोजन की व्यवस्था लागू की थी. बताया कि वह योजना 18 जुलाई को ही लागू की गई थी जिससे आज साल भर हो गए। हालांकि दुःखद है कि 8-9 महीने में ही वह व्यवस्था खत्म हो गई है। बताया कि एमएस रहते उन्हें जो पैसा मिला था करीब 35 हजार रुपये उसे अस्पताल को दे दिया है ताकि मरीजों को मुफ्त भोजन मिल सके। कहा कि प्रयास है कि आगे भी यह व्यवस्था चलती रहे।
यहां यह भी बता दें कि प्रो मिश्र रोजना काशी के घाटों पर घाट वॉक करते हैं। इस वॉक के दौरान भी वह घाटों पर जुटने वाले पक्के महाल के लोगों और अन्य लोगों का इलाज करते रहते हैं। इसके लिए घाट पर ही प्राथमिक उपचार के साधन और दवाएं रखवाना भी शुरू कर दिया है। कहा इसे आगे बढाएंगे।
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