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वाराणसी

यूपी की राजनीति: पूर्वांचल में परंपरागत वोटों के लिये गढ़े जा रहे हैं नए राजनैतिक समीकरण

परंपरागत वोटों की गोलबंदी की कवायद में जुटी हैं पार्टियां।

वाराणसीFeb 26, 2020 / 12:54 pm

रफतउद्दीन फरीद

Political Scenario in Purvanchal

पूर्वांचल में राजनैतिक समीकरण

वाराणसी. पूर्वांचल में इन दिनों राजनैतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। 2014 से लेकर 2019 के चुनावों में भाजपा के हाथों मुंह की खा चुकी यूपी की बड़ी क्षेत्रीय पार्टियां नई रणनीति पर काम कर रही हैं। इन पिछले तीन चुनावों में लगातार बुरी हार का सामना कर रही ये पार्टियां अपने परंपरागत वोटों को फिर से एकजुट करने की जुगत में हैं। इसके लिये दल बदल और जोड़तोड़ से भी परहेज नहीं। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नेताओं की एक्सपोर्ट इम्पोर्ट पॉलिटिक्स का सिलसिला अब तक रुका नहीं है। इसमें भी जहां कांग्रेस और और समाजवादी पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने में जुटी हैं, वहीं बसपा के लिये मुश्किल ये है कि उसके अपने बड़े नेता ही पाटी को अलविदा कह रहे हैं। अपना दल एस अब भी भाजपा के साथ है तो एनडीए से तलाक ले चुकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया अपनी जाति की गोलबंदी में सक्रिय हैं।

 

पूर्वांचल के जिलों से बसपा नेताओं के पार्टी छोड़कर कांग्रेस या सपा में जाने की खबरें लगातार आ रही हैं। पिछले दिनों बसपा छोड़ चुके कई नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन भी थामा। बस्ती में पूर्व सांसद राम प्रसाद चौधरी का पूरा कुनबा ही बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुका है। राम प्रसाद चौधरी, उनके भतीजे और पूर्व सांसद अरविंद चौधरी व राम प्रसाद के पुत्र कविंन्द्र चौधरी ने ही नहीं उनके साथ पूर्व विधायक नन्दू चौधरी, दूधराम और राजेन्द्र चौधरी व पूर्व प्रत्याशी विपिन शुक्ला और अखिलेश चौधरी के साथ ही छह से अधिक जिला पंचायत सदस्य, 17 पूर्व जिला पंचायत सदस्य, सात पूव ब्लॉक प्रमुख समेत दर्जनों प्रधान व क्षेत्र पंचायत सदस्यों ने बसपा छोड़कर सपा की सदस्यता ली। बस्ती में तो जैसे बसपा में भगदड़ ही मच गयी और इसका फायदा बड़ी खामोशी से सपा ने उठाया।

 

आजमगढ़, वाराणसी और मिर्जापुर मंडल में भी बसपा नेताओं में बेचैनी छिपी नहीं है। पूर्व कैबिनेट मंत्री और चंदौली से सांसद रहे बसपा नेता कैलाश नाथ सिंह यादव ने इसी सप्ताह बसपा को अलविदा कह दिया। हालांकि उन्होंने सपा में जाने के संकेत दिये हैं। उनके बाद अब उनके बेटे और सोनभद्र के ओबरा से पूर्व विधायक सुनील कुमार सिंह ने भी बसपा छोड़ दी। ऐसी चर्चा है कि दोनों बाप-बेटे समाजवादी पार्टी में जा सकते हैं। कैलाशनाथ सिंह सपा से बसपा में आए थे। कैलाशनाथ सिंह यादव इलाके के बड़े यादव नेता माने जाते हैं, जिनकी यादवों के साथ-साथ बसपा के परम्परागत वोटों पर भी बड़ा असर बताया जाता है। ऐसे में यह बसपा के लिये बड़ा नुकसान है, जिससे उबरने में उसे काफी वक्त लगेगा।

 

बताते चलें कि जौनपुर से बसपा सांसद भी गठबंधन टूटने के बावजूद समाजवादी पार्टी के सम्मान कार्यक्रम में शिरकत कर पार्टी को परेशान करने वाला बयान दे चुके हैं। उधर जातिगत गणित को देखते हुए पूर्वांचल की राजनीति में अपना असर रखने वाले अंसारी परिवार के दिल में सपा के लिये सॉफ्ट कॉर्नर किसी से छिपा नहीं है। कुल मिलाकर पूर्वांचल में जिस तेजी से समीकरण बदल रहे हैं उससे आगामी 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव तक इसके और दिलचस्प होने के संकेत हैं।

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