देर से हुई रोपाई वैसे भी बारिश देर से आने के चलते धान की रोपाई में भी विलंब हुई। अब उन पौधों को बचाना टेढी खीर नजर आने लगी है। हल्की-फुल्की बारिश से कोई लाभ धान को नहीं होने जा रहा। ऐसे में पैदावार घटना तय माना जा रहा है। ये हाल बनारस के करीब आठो विकास खंड का है।
अब तो धान की फसल में रोग भी लगने लगे इस मानसूनी सीजन में जो भी हल्की-फुल्की बारिश हुई उसमें किसानों ने धान की रोपाई तो करा दी। लेकिन माकूल बारिश न होने के चलते एक तरफ जहां धान की फसल सूखती नजर आ रही है वहीं पौधों में रोग भी लगने लगे हैं। अब तो कृषि वैज्ञानिकों का मानन है कि अब अगर मानसून की बारिश होती भी है तो धान की पैदावार पर कम से कम 30 फीसद की गिरावट आनी तय है।
बनारस ही नहीं पूर्वांचल में धान की खेती का रकबा घटा वैसे भी इस बार कृषि विभाग ने दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए धान का क्षेत्रफल घटा दिया है। फिलहाल वाराणसी में 1602 हेक्टेयर है धान का रकबा। उप कृषि निदेशक एके सिंह का कहना है कि गंगा किनारे के गांवों में अरहर की खेती प्रमुखता से की जाती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (दलहनी) के तहत कृषि यंत्रों पर अनुदान, एचडीईसी पाइप (लपेटा पाइप), स्प्रे मशीन, बखारी आदि पर अनुदान दिया जा रहा है। अच्छी पैदावार, कीड़े न लगने आदि को देखते हुए प्रदेश भर में मौसम और जमीन के अनुकूल बीज का वितरण किया जाता है। पूर्वांचल की बात करें तो धान रोपाई का रकबा 14,500 हेक्टेयर घटा दिया गया है। इसकी जगह अरहर, उड़द और मूंग का क्षेत्रफल 13,000 हेक्टेयर से अधिक बढ़ा है। दरअसल दालों की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण के लिए इस बार दलहनी फसलों के ज्यादा उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है।