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वाराणसी

मौसम की मारः धान की पैदावार 30 फीसद तक घटने के आसार

प्रकृति की मार इस बार फिर से किसानों पर पड़ने जा रही है। खास तौर पर खरीफ की फसल के दौरान। ऐसा मौसम के बिगड़े मिजाज के चलते होगा। दरअसल खरीफ की फसल और वो भी धान के लिए जिस तरह की बारिश चाहिए वो हुई नहीं। ऐसे में किसान खासे चिंतित नजर आ रहे हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि अबकी 30 फीसद की कमी आ सकती है धान की पैदावार में।

वाराणसीAug 12, 2022 / 04:24 pm

Ajay Chaturvedi

बारिश न होने से सूखने की कगार पर धान की फसल

बारिश न होने से सूखने की कगार पर धान की फसल

वाराणसी. इसे जो भी नाम दें, चाहे ग्लोबल वार्मिंग कहें या जलवायु परिवर्तन, मौसम ने किसानों की कमर तोड़ दी है। किसान चिंतित है खरीफ वो भी धान की फसल को लेकर। अपक्षित बारिश हुई नहीं। ऐसे में धान की पैदावार में 30 फीसद की कमी के आसार जताए जाने लगे हैं। अगर ऐसा होता है तो किसानों के लिए भारी मुसीबत होगी क्योंकि पहले से ही वाराणसी का धान का रकबा घट चुका है। वैसे भी वाराणसी का अधिकांश इलाका तो अब शहरी हो चुका है। खेत बचे ही नहीं जो हैं उसमें भी किसानों ने दलहन और तिलहन की खेती शुरू कर दी। दरअसल इसमें उन्हें ज्यादा मुनाफा नजर आ रहा था। लेकिन कम बारिश या अवर्षण से खरीफ की पूरी फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के आसार नजर आने लगे हैं।
देर से हुई रोपाई

वैसे भी बारिश देर से आने के चलते धान की रोपाई में भी विलंब हुई। अब उन पौधों को बचाना टेढी खीर नजर आने लगी है। हल्की-फुल्की बारिश से कोई लाभ धान को नहीं होने जा रहा। ऐसे में पैदावार घटना तय माना जा रहा है। ये हाल बनारस के करीब आठो विकास खंड का है।
अब तो धान की फसल में रोग भी लगने लगे

इस मानसूनी सीजन में जो भी हल्की-फुल्की बारिश हुई उसमें किसानों ने धान की रोपाई तो करा दी। लेकिन माकूल बारिश न होने के चलते एक तरफ जहां धान की फसल सूखती नजर आ रही है वहीं पौधों में रोग भी लगने लगे हैं। अब तो कृषि वैज्ञानिकों का मानन है कि अब अगर मानसून की बारिश होती भी है तो धान की पैदावार पर कम से कम 30 फीसद की गिरावट आनी तय है।
बनारस ही नहीं पूर्वांचल में धान की खेती का रकबा घटा

वैसे भी इस बार कृषि विभाग ने दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए धान का क्षेत्रफल घटा दिया है। फिलहाल वाराणसी में 1602 हेक्टेयर है धान का रकबा। उप कृषि निदेशक एके सिंह का कहना है कि गंगा किनारे के गांवों में अरहर की खेती प्रमुखता से की जाती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (दलहनी) के तहत कृषि यंत्रों पर अनुदान, एचडीईसी पाइप (लपेटा पाइप), स्प्रे मशीन, बखारी आदि पर अनुदान दिया जा रहा है। अच्छी पैदावार, कीड़े न लगने आदि को देखते हुए प्रदेश भर में मौसम और जमीन के अनुकूल बीज का वितरण किया जाता है। पूर्वांचल की बात करें तो धान रोपाई का रकबा 14,500 हेक्टेयर घटा दिया गया है। इसकी जगह अरहर, उड़द और मूंग का क्षेत्रफल 13,000 हेक्टेयर से अधिक बढ़ा है। दरअसल दालों की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण के लिए इस बार दलहनी फसलों के ज्यादा उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है।

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