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पार्श्व एकादशी: व्रत से पूरी होती है मनोकामना, जानिए इस दिन किसकी करें पूजा

इसी दिन भगवान विष्णु ने लिया था वामन अवतार

वाराणसीAug 31, 2017 / 02:27 pm

sarveshwari Mishra

parshva ekadashi

पार्श्व एकादशी

वाराणसी. हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत खास और महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि हर एकादशी एक खास व्रत से जुड़ी है। इस दिन लोग पूर्ण विधि के अनुसार व्रत रखते हैं और व्रत से जुड़े देवी-देवता की पूजा करते हैं। हर एक एकादशी में विशेष देव की पूजा करने का एक खास फल भी प्राप्त होता है। साल में कुल 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं कुछ लोग सारे व्रत रखते हैं तो कुछ अपनी मनोकामना के अनुसार ही किसी विशेष एकादशी का व्रत रखते हैं। इनमें से ही खास है पार्श्व एकादशी।
पार्श्व एकादशी
पार्श्व एकादशी को ही वामन एकादशी भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन विशेष रूप से श्रीहरि के अवतार ‘वामन’ की पूजा की जाती है। वामन देव भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार हैं, जिनकी पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यह वामन एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकाद्शी है, और हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष यह एकादशी 2 सितंबर को पड़ रही है। यदि आप नहीं जानते तो बता दें कि इस एकादशी को पद्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी तथा परिवर्तिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है।
ऐसे करें पूजा
इस एकादशी पर वामन देव की पूजा करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। उसके जीवन से सभी बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं। स्वयं भगवान विष्णु के अवतार वामन देव भी संसार से बुरे कर्मों का सर्वनाश करने के लिए जाने जाते हैं।
कौन हैं वामन देव
एक पौराणिक आख्यान के अनुसार त्रेतायुग में बलि नामक एक दानव था। परन्तु दानव होते हुए भी वह भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। साथ ही वह सदैव ही यज्ञ और तप आदि किया करता था।

वह अपनी आस्था में इतना निपुण था कि विभिन्न देव उसे आशीर्वाद देने से पीछे नहीं हटते थे। धीरे-धीरे उसके तप की अग्नि इतनी बढ़ गई और अपनी भक्ति के प्रभाव से वह इतना बलवान होने लगा कि वह स्वर्ग में इन्द्र के स्थान पर राज्य करने की कोशिश करने लगा।

उसकी शक्ति देख इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन न कर सके और सभी श्रीहरि के पास जाकर प्रार्थना करने लगे। देवों की समस्या का समाधान निकालते हुए भगवान श्रीविष्णु ने वामन का रूप धारण कर पृथ्वी लोक पर जाने का विचार बनाया।

वे वामन रूप में राजा बलि के सामने पहुंचे और उनसे याचना की, ‘हे राजन, तुम मुझे तीन पग भूमि दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा’। राजा काफी दयालु थे, उन्होंने सोचा कि एक छोटा सा बालक कितनी जमीन ले लेगा, इसलिए उन्होंने वामन का आग्रह स्वीकार किया।

वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर लिया और कहा कि आप तीन पग जमीन ले सकते हैं, लेकिन राजा बलि श्रीहरि को पहचान ना सके। वामन तो श्रीहरि के अवतार थे, आज्ञा पाते ही उन्होंने अपना आकार बढ़ाया, और वे इतने बड़े हो गए कि शायद पृथ्वी भी छोटी पड़ गई।
उन्हें देख राजा बलि चकित हो गए, वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। आकार बड़ा करते ही वामन देव ने अपने प्रथम पग में भूमि और दूसरे पग में नभ ले लिया। अभी वे तीसरे पग को रखने ही वाले थे कि राजा बलि की चिंता बढ़ गई।
वामन देव ने पूछा, ‘बताओ राजा बलि, मैं यह तीसरा पग कहां रखूं’। ऐसे में राजा सोचने लगे कि यदि वामन ने तीसरा पग पाताल में रखा तो वह कहीं भी रहने लायक नहीं रहेंगे, इसलिए उन्होंने तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर आगे बढ़ दिया, जिसे देखते ही वामन ने अपना पांव उस पर रख दिया।
अर्थात् स्वर्ग एवं पृथ्वी लोक एक साथ-साथ राजा बलि पर भी वामन देव का अधिकर हो गया। पौराणिक आलेख के अनुसार इसके बाद भक्त दानव पाताल लोक चला गया था, और सभी देवों को उसकी शक्ति से छुटकारा मिला।
लेकिन पाताल लोक जाकर भी अपने कठोर तप से राजा बलि ने फिर से विष्णुजी को प्रसन्न किया और वरदान के रूप में वामन देव को पाताल लोक में पहरेदार बनाने की विनती की। यह समय भाद्रपद माह का ही था और हिन्दू पंचांग के अनुसार यह समय शुक्ल पक्ष के भीतर आता है।
तभी से हिन्दू धर्म में इस दिन ‘वामन एकादशी’ मनाई जाती है। एक और मान्यता के अनुसार इस दिन श्रीहरि, जो कि पहले से ही चातुर्मास के बाद अपनी शयन अवस्था में हैं, वे करवट बदलते हैं। लेकिन केवल श्रीहरि ही नहीं, इस एकादशी पर ब्रह्मा एवं महेश की पूजा करने का भी महत्व है।
जानें कैसे रखें व्रत
यदि आप इस दिन व्रत एवं पूजन करने का विचार बना रहे हैं तो याद रखें कि इस दिन चावल और दही सहित चांदी का दान करने का विशेष विधि-विधान है। इसके अलावा तांबा या उससे बनी कोई भी वस्तु दान कर सकते हैं। साथ ही रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए।

वैसे तो वामन एकादशी की पूजा करने के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। आप भगवान वामन का नाम लेकर श्रीहरि का कोई भी मंत्र उचारण कर सकते हैं। नहीं तो निम्नलिखित मंत्र पढ़ें: देवेश्चराय देवाय, देव संभूति कारिणे। प्रभवे सर्व देवानां वामनाय नमो नम:।।

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