जनता तक सीधी पकड़ बनाने के लिए नेताओं को मंच की जरूरत होती है, यदि वह माध्यम धर्म मे जरिए मिल जाये तो क्या कहना। आयोजक भी इस मामले में किसी से कम नहीं है। वह समाज में परम्परा को जीवित रखने के लिए ऐसे आयोजन करते हैं तो उसका लाभ भी कमाना चाहेगे। आयोजक भी धार्मिक मंच पर राजनीतिक दलों को आमंत्रित करके अपना नम्बर बढ़ाने मेें जुटे हैं। आयोजक व राजनीतिक दल यह भूल जाते हैं कि रावण जलाने का अधिकर सिर्फ प्रभु श्रीराम को होता है यह अधिकारी किसी अन्य को नहीं दिया जा सकता है।
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प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पीछे नहीं है
रावण जलाने में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पीछे नहीं है। वर्षों से चली आ रही परम्परा आज भी जारी है। रामलीला के सारे पात्रों को क्या करना होता है इसका निर्धारण वर्षों पहले हो चुका है। रामलीला के पात्रों में किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं हो सकती है। हमारे देश की संस्कृति भी यही कहती है कि वर्षो जिस परम्परा से पर्व मनाये जाते हैं वह परम्परा आज भी जीवित है। परम्पराओं पर आधुनिकता तो हावी हो रही है, लेकिन तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। दशहरा को लेकर अब ऐसा नहीं रह गया है। नई दिल्ली से लेकर यूपी तक में अब नयी परम्परा चल पड़ी है। राजनीतिक दलों में खुद को प्रभु श्रीराम के रुप में प्रस्तुत करने की इतनी जिज्ञासा पैदा हो गयी है कि अब प्रभु श्री राम को रावण जलाने का अधिकार तक नहीं मिल रहा है।
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रावण जलाने में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पीछे नहीं है। वर्षों से चली आ रही परम्परा आज भी जारी है। रामलीला के सारे पात्रों को क्या करना होता है इसका निर्धारण वर्षों पहले हो चुका है। रामलीला के पात्रों में किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं हो सकती है। हमारे देश की संस्कृति भी यही कहती है कि वर्षो जिस परम्परा से पर्व मनाये जाते हैं वह परम्परा आज भी जीवित है। परम्पराओं पर आधुनिकता तो हावी हो रही है, लेकिन तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। दशहरा को लेकर अब ऐसा नहीं रह गया है। नई दिल्ली से लेकर यूपी तक में अब नयी परम्परा चल पड़ी है। राजनीतिक दलों में खुद को प्रभु श्रीराम के रुप में प्रस्तुत करने की इतनी जिज्ञासा पैदा हो गयी है कि अब प्रभु श्री राम को रावण जलाने का अधिकार तक नहीं मिल रहा है।
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